गुरुवार, 4 मार्च 2010

अभी मै गिरा कहाँ हूँ...(कविता)

अभी मै गिरा कहाँ हूँ,
बस गिरने वाला हूँ,,,,,,,,,,,

अभी तो ना दुत्कारो मुझे,उपेक्षित भी ना करो, 
पास आने दो मुझे और मेरे पास आते भी ना डरो,
अभी तो निर्दोष हूँ,सच्चे-झूठे दोष भी ना धरो,
अच्छा-बुरा सोच कर अब भी डरता हूँ मै,
पाप के डर से ही कई पुण्य भी तो नहीं करता हूँ मैं,
तुम तो पाक-साफ़ रह लो,अन्दर ही अन्दर रोज तो मरता हूँ मैं,
एक के दो करने के चक्कर में अभी घिरा कहाँ हूँ,

बस घिरने वाला हूँ!


अभी तो धोखा दिया कहाँ मैंने,बस खाए है,
अपनों को ही नहीं लूट पाया,बहुत दूर पराये है,
अँधेरे में हूँ,बस मै हूँ,नहीं पास कोई सायें है,
अभी तो हंसी ही है हंसी में मेरी,
सच में बेबस हो जाता हूँ बेबसी में मेरी,
दिख जाती है सूरत मुझे हर किसी में मेरी,
जो तुमने सोच लिया वो अभी किया कहाँ हैं,

बस करने वाला हूँ!

अभी मै गिरा कहाँ हूँ,
बस गिरने वाला हूँ,,,,,,,,,,,
कुंवर जी,

11 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद पंडित जी.....

    कुंवर जी,

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  2. bahut ache bahv ukere hei apne kavita mei....itna dard kahan se laye kavivar....

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  3. waah !laazwaab rahi rachna aur yah haqikat bhi hai ,aane ke liye shukriyaa ,holi ki badhai

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  4. bahur sunder ehsaaso ko bhara hai is rachna per agar bura na mane to thoda tuk-bandi me mila kar likhe to jyada acchha lagega.

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  5. Lo maine soch liya ki aap isi tarah kavita likhte rahiye,achhi rachna.

    VIKAS PANDEY

    http://vicharokadarpan.blogspot.com/

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  6. बहुत ही सुन्दर शब्दो के संयोजन के साथ लाजवाब लगी आपकी रचना ।

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  7. aap sab ka haardik dhanyawaad!
    jab jeevan ki tukbandi gadbada jaati hai to kalam ka sahaara liya jaata hai!fir bhi tukbandi ke sujhaaw par amal karne ki koshish rahegi!ek baar fir dhanyawaad...

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