शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

कृप्या सच्चे मुसलमान भाई इसे ना पढ़े! मै नहीं चाहता मेरी वजह से किसी मुस्लिम भाई के इस्लाम का उल्लंघन हो!लेकिन जवाब कौन देगा भाई?

मेरा इरादा कभी भी किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कतई नहीं रहा है!बस विषय कई बार ऐसे होते है कि कई बार बहस चल ही पड़ती है!हो  सकता  है  कि मै गलत हूँ,तो सही बताने वालो का भी स्वागत है जी!


 "मुफ्ती अब्दुल कुदूस रूमी ने फतवा जारी करते हुए कहा कि राष्ट्रगान का गायन उन्हें मुस्लिमों को नरक पहुँचाएगा। बहिष्त लोगों में लोहा मण्डी और शहीद नगर मस्जिदों के मुतवल्ली भी थे। इनमें से 13 ने माफी मांग ली। आश्चर्य की बात है कि अपराधिक गतिविधियों में शामिल होना, आतंकवादी कार्रवाईयों में भाग लेना, झूठ, धोखा, हिंसा, हत्या, असहिष्णुता, शराब, जुआ, राष्ट्र द्रोह और तस्करी जैसे कृत्य से कोई नरक में नहीं जाता मगर देश भक्ति का ज़ज़बा पैदा करने वाले राष्ट्र गान को गाने मात्र से एक इंसान नरक का अधिकारी हो जाता है।"
इसीलिए मै सच्चे मुसलमान भाइयो से पहले ही अपील कर चुका हूँ!
                           
वन्दे मातरम्‌ गीत आनन्दमठ में 1882 में आया लेकिन उसको एक एकीकृत करने वाले गीत के रूप में देखने से सबसे पहले इंकार 1923 में काकीनाड कांग्रेस अधिवेशन में तत्कालीन कांग्रेसाध्यक्ष मौलाना अहमद अली ने किया जब उन्होंने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के हिमालय पं. विष्णु दिगम्बर पलुस्कर को वन्दे मातरम्‌ गाने के बीच में टोका। लेकिन पं. पलुस्कर ने बीच में रुकर कर इस महान गीत का अपमान नहीं होने दिया, पं- पलुस्कर पूरा गाना गाकर ही रुके।


उस हिसाब से  तो ब्रिटेन के राष्ट्र गान में रानी को हर तरह से बचाने की प्रार्थना भगवान से की गई है अब ब्रिटेन के नागरिकों को यह सवाल उठाना चाहिए कि कि भगवान रानी को ही क्यो बचाए, किसी कैंसर के मरीज को क्यों नहीं?
बांग्लादेश से पूछा जा सकता है कि उसके राष्ट्रगीत में यह आम जैसे फल का विशेषोल्लेख क्यों है?
सउदी अरब का राष्ट्रगीत ‘‘सारे मुस्लिमों के उत्कर्ष की ही क्यों बात करता है और राष्ट्रगीत में राजा की चाटुकारिता की क्या जरूरत है?सीरिया के राष्ट्रगीत में सिर्फ ‘अरबवाद की चर्चा क्या इसे रेसिस्ट नह बनाती? ईरान के राष्ट्रगीत में यह इमाम का संदेश क्या कर रहा है? लीबिया का राष्ट्रगीत अल्लाहो अकबर की पुकारें लगाता है तो क्या वो धार्मिक हुआ या राष्ट्रीय?


शम्सु इस्लाम हमें यह भी जताने की कोशिश करते हैं कि वन्दे मातरम्‌ गीत कोई बड़ा सिद्ध नहीं था और यह भी कोई राष्ट्रगीत न होकर मात्र बंगाल गीत था। वह यह नहीं बताते कि कनाडा का राष्ट्रगीत 1880 में पहली बार बजने के सौ साल बाद राष्ट्रगीत बना। 1906 तक उसका कहीं उल्लेख भी नहीं हुआ था। आस्ट्रेलिया का राष्ट्रगीत 1878 में सिडनी में पहली बार बजा और 19 अप्रैल 1984 को राष्ट्रगीत का दर्जा प्राप्त हुआ।


सवाल यह है कि इतने वषो तक क्यों वन्दे मातरम्‌ गैर इस्लामी नहीं था?


क्यों खिलाफत आंदोलन के अधिवेशनों की शुरुआत वन्दे मातरम्‌ से होती थी और ये अहमद अली, शौकत अली, जफर अली जैसे वरिष्ठ मुस्लिम नेता इसके सम्मान में उठकर खड़े होते थे। बेरिस्टर जिन्ना पहले तो इसके सम्मान में खडे न होने वालों को फटकार लगाते थे। रफीक जकारिया ने अपने निबन्ध में इस बात की ओर इशारा किया है। उनके अनुसार मुस्लिमों द्वारा वन्दे मातरम्‌ के गायन पर विवाद निरर्थक है। यह गीत स्वतंत्रता संग्राम के दौरान काँग्रेस के सभी मुस्लिम नेताओं द्वारा गाया जाता था। जो मुस्लिम इसे गाना नहीं चाहते, न गाए लेकिन गीत के सम्मान में उठकर तो खड़े हो जाए क्योंकि इसका एक संघर्ष का इतिहास रहा है और यह संविधान में राष्ट्रगान घोषित किया गया है।


1906 से 1911 तक यह वंदे मातरम्‌ गीत पूरा गाया जाता था तो इस मंत्र में यह ताकत थी कि बंगाल का विभाजन ब्रितानी हुकूमत को वापस लेना पडा, लेकिन, 1947 तक जबकि इस मंत्र गीत को खण्डित करने पर तथाकथित ‘राजनीतिक सहमति बन गई तब तक भारत भी इतना कमजोर हो गया कि अपना खण्डन नहीं रोक सका यदि इस गीत मंत्र के टुकड़े पहले हुए तो उसकी परिणति देश के टुकडे होने में हुई।मदनलाल ढींगरा, फुल्ल चाकी, खुदीराम बोस, सूर्यसेन, रामप्रसाद बिस्मिल और अन्य बहुत से क्रांतिकारियों ने वंदे मातरम कही कर फासी के फंदे को चूमा। भगत सिंह अपने पिता को पत्र वंदे मातरम्‌ से अभिवादन कर लिखते थे। सुभाषचं बोस की आजाद हिन्द फौज ने इस गीत को अंगीकार किया और सिंगापुर रेडियो स्टेशन से इसका प्रसारण होता था।


ये है जी वो हमारा सर्व-सम्माननीय राष्ट्रगीत!


सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्

सस्य श्यामलां मातरंम् .
शुभ्र ज्योत्सनाम् पुलकित यामिनीम्
फुल्ल कुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम् .
सुखदां वरदां मातरम् ॥

कोटि कोटि कन्ठ कलकल निनाद कराले
द्विसप्त कोटि भुजैर्ध्रत खरकरवाले
के बोले मा तुमी अबले
बहुबल धारिणीम् नमामि तारिणीम्
रिपुदलवारिणीम् मातरम् ॥



तुमि विद्या तुमि धर्म, तुमि ह्रदि तुमि मर्म
त्वं हि प्राणाः शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारै प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे ॥


त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदल विहारिणी
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्
सुजलां सुफलां मातरम् ॥


श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्
धरणीं भरणीं मातरम् ॥


आज कि सारी सामग्री मैंने "वन्देमातरम इतिहास विकिपीडिआ" से ली है!मै इसके लिए 
"वन्देमातरम इतिहास विकिपीडिआ" का आभारी हूँ!u -tube पर सुनने-देखने के लिए नीचे दिए गए लिन्क पर क्लिक कर के कुछ महसूस करे! चित्र भी गूगल से ही लिया है!


http://www.youtube.com/watch?v=xj1Iy4nRMkc




"इस देश में असंख्य अल्पसंख्यक वन्दे मातरम्‌ के प्रति श्रद्धा रखते हैं। यह उनकी श्रद्धा का अपमान ही था जब आगरा में 10 मार्च 2004 को 54 मुसलमानों को जाति बाहर कर दिया गया और उनकी शादिया शून्य घोषित कर दी गई क्योंकि उन्होंने  कहीं ये कह दिया था कि वन्दे मातरम्‌ गाना गैर इस्लामी नहीं है।"


सवाल यह है कि इतने वषो तक क्यों वन्दे मातरम्‌ गैर इस्लामी नहीं था?



क्यों खिलाफत आंदोलन के अधिवेशनों की शुरुआत वन्दे मातरम्‌ से होती थी और ये अहमद अली, शौकत अली, जफर अली जैसे वरिष्ठ मुस्लिम नेता इसके सम्मान में उठकर खड़े होते थे। बेरिस्टर जिन्ना पहले तो इसके सम्मान में खडे न होने वालों को फटकार लगाते थे।




कृप्या सच्चे मुसलमान भाई इसे ना पढ़े! मै नहीं चाहता मेरी वजह से किसी मुस्लिम भाई के इस्लाम का उल्लंघन हो!लेकिन जवाब कौन देगा भाई?











जय हिंद जय श्रीराम,
कुंवर जी,

38 टिप्‍पणियां:

  1. विचारणीय लेख .......सच्चा मुसलमान या सच्चा हिंदू वो सिर्फ एक बात जनता है ......के मरंगे और जियेंगे सिर्फ देश के लिए .....बहुत अच्छी जानकारी के साथ आपने इसे पेश किया है .

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  2. aap log kar kya rahe hai aap ye sab likh rahe ho udhar giri haridwar haridwar ki rat lagaye ho us mula ke paas, haridwar bula ke kya uski puchee loge, pehle to unke dharam ke bare men ulta pulta likhte hopir jab wo hindu ki maa bhen karta h tab haa huu hee karte firte ho sharam karo bujhne ki takat na ho to kamse kam aag to mat lagao

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  3. koi dhangka zawab bhi nahi derhe usko or ha ha ha 72 sunder- sunder ladkiya. aur jannti sharab.
    na jane kya kya khakar uksaye ja rahe ho fir wo bolta hai to dhangka zawab bhi do ha ha hi hi mat karte firo

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  4. वंदे मातरम!
    जय हिंद!

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  5. @devesh- aapka dhanyawaad hai ji,

    @pudshpendr- bhai aapka swaagat hai,pehle ye to bataao ki yaha kya galat hai?
    or haa ye bhi dekhna chaahiye ki shuruaat kidhar se hoti hai?

    kunwar ji,

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  6. इसका सही जवाब तो वो ही देंगे और खुल कर कहेंगे वन्दे मातरम - भारत माता की जय

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  7. हमने लेख पढ़ लिया... हम इंसान हैं, मुसलमान नहीं (मज़हब के ठेकेदार बाक़ायदा इस बात का ऐलान कर चुके हैं..)

    बहरहाल, अच्छी जानकारी दी है...
    मां तुझे सलाम
    वन्दे मातरम्
    जय हिंद...

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  8. अली मियां द्वारा‘ वन्देमातरम्’ के विरोध के कारण भारतीय मुसलमानों को देशद्रोही के रूप में चित्रित किया जा रहा था। जबकि देशद्रोही तो ‘आनन्द मठ’ के लेखक को कहा जाना चाहिए जिसमें अंगे्रज़ों के आगमन पर हर्षित होकर कहा गया कि ‘ अब अंग्रेज़ आ गये हैं, हमारी जान व माल की सुरक्षा होगी।’
    जिसके कारण डा0 लोहिया ने कहा था कि ‘आनन्द मठ’ उपन्यास हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन पर एक कलंक है।
    यह कलंक उस बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा लगाया गया जिसने ‘हाजी मोहसिन फण्ड’ से आर्थिक सहायता पाकर बी. ए. की डिग्री प्राप्त की और वाकार्थ में निपुणता पाते ही मुस्लिम दुश्मनी के प्लॉट पर एक उपन्यास लिख डाला जिसमें नायक भवानन्द महेन्द्र को समझाते हुए कहता है कि जब तक मुसलमानों को निकाल न दिया जाए तब तक तेरा धर्म सुरक्षित नहीं।

    ईसाई या उन संगठनों के माननेवाले भी वन्देमातरम् और सरस्वती वन्दना को अनिवार्य किए जाने के सख्त ख़िलाफ़ है, जो एक ईश्वर को मानते हैं और उसके सिवा किसी को पूजनीय नहीं समझते।

    ‘‘आनन्द मठ’’ के पृष्ठ-77 पर तीसरी और चैथी पंक्ति में लिखा हैः
    ‘‘हम राज्य नहीं चाहते- हम केवल मुसलमानों को भगवान का विद्वेषी मानकर उनका वंश-सहित नाश करना चाहते हैं।’’पृष्ठ-88-89 पर बंकिम चन्द चटोपाध्याय ने अपने उपन्यास ‘‘आनन्द मठ’’ में लिखा हैः
    ‘‘भवानंद ने कह दिया था, ‘‘भाई, अगर किसी घर में एक तरफ मणि-मणिक्य, हीरक, प्रवाल आदि देखो और दूसरी तरफ टूटी बंदूक देखो तो मणि-मणिक्य, हरिक और प्रवाल छोड़कर टूटी बंदूक ही लेकर आना।’’

    राष्ट्रीयता के प्रश्न पर चर्चा करेगा अब ‘‘रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा’’ aziz-burney-final-shots-vande-matram
    http://hamarianjuman.blogspot.com/2009/11/aziz-burney-final-shots-vande-matram.html

    ‘वन्दे मातरम्’ का अनुवाद, हकीक़त, & नफ़रत की आग बुझाइएः -डा. अनवर जमाल vande-matram-islamic-answer
    http://hamarianjuman.blogspot.com/2009/11/vande-matram-islamic-answer.html

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  9. 'वन्‍दे ईश्‍वरम' अर्थात वन्‍दना करो उसकी जिसने सारी सृष्टि बनायी

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  10. फिरदौस जी जैसे लोग ही सच्चे भारतीय, इंसान और मुसलमान हैं..
    आपको धन्यवाद अच्छी जानकारी के लिये... जो लोग यह कह रह हैं कि इस किस परिप्रेक्ष्य में लिखा गया वे इतिहास शून्य हैं या फिर बहुत चालाक.... प्रारम्भ में विदेशी राजाओं का एक ही उद्देश्य था दूसरों को मारकर अपना धर्म बढ़ाना... ऐसे में उनका प्रतिरोध कहां से गलत हुआ..

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  11. हूण,शक,कुषाण,मुगल,डच,फ़्रान्सीसी,ब्रिटिश सबने अपने अपने भले के लिये राज्य का विस्तार एक दूसरे को हरा कर किया और आप हम जैसे लोग वो हैं जो कि सैकड़ों हजारों साल बाद भी आज के बारे में बात न करके वहीं चिपके हैं अपने अपने अतीत को बेहतरऔर सर्वश्रेष्ठ बताते हुए। जिस में साहस है वह इतिहास को जानकर आज की सामाजिक समस्याएं सुलझा दे साथ ही उस जनता कोभी अक्ल दे दे जो कि देश में माओवादी विचारधारा और लोकतांत्रिक(?)सरकार के बीच चल रहे गृहयुद्ध से परेशान न होकर आई पी एल मैच देख रही है

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  12. jo bhi ho me to rastra gan garv ke sath gaunga chahe kuch bhi ho



    shkhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  13. ek zabardast lekh...khun me kuch chubhne laga...apne desh me is tarah ki neetiyaan dekh kar... likhte rahiye kunwar ji ..aise sawaal uthne zaroori hain ...

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  14. @फिरदौस खान-आपका स्वागत है जी,मुसलमान और इंसान में फर्क मैंने तो कभी महसूस नहीं किया जी!आपने पढ़ा तो गर्व भी महसूस किया होगा!भाई देश के सम्मान से जुड़ा है हम सब का सम्मान!हम और आप तो शायद ये ही सोचते है!पर उनका क्या करे जो खुद को देश से,उसके सविंधान से भी ऊपर मानते है?



    @वन्दे इश्वरं- आपका स्वागत है जी!


    आपके हिसाब से केवल बाप सम्मान का अधिकारी है,माँ नहीं!या केवल परमात्मा कि वंदना करो,सम्मान करो!प्रत्यक्ष माँ-बाप जो है,उनको?आप ही बतायेंगे तो उचित ही बताएँगे!मेरी समझ नहीं आया जी कि बंकिम जी ने बी.ए. की डिग्री किस फण्ड से ली उए बताने की जरूरत थी या नहीं!ये विषय से अलग होने वाली बात लगी जी मुझे तो!बहरहाल,आपने अमूल्य विचार यहाँ प्रकट किये आपका धन्यवाद भी है जी!

    कुंवर जी,

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  15. @राईना-धन्यवाद है जी आपका!ऐसे ही सहयोग देते रहिये जी!



    @फरहीन नाज़-आपका स्वागत है जी,आपके विचार सम्माननीय है!लेकिन गलतियों की पहचान करने के लिए पीछे मुड़ कर देखना ही पड़ता है!यदि ऐसा नहीं करेंगे तो कैसे पता लगेगा हम ठीक है या गलत!फिर तो जो हो रहा है,जैसे हो रहा है,होने दो!साधारण सी बात है कि हम गलत ठीक का, या कुछ भी निर्णय अपने अनुभव के आधार पर लेते है जो कि अतीत ही हो चुका है,होता जा रहा है!आपका सहयोग भविष्य में भी मिलते रहने कि आशा कर सकता हूँ जी!

    @कुमावत-जी आपका भी धन्यवाद हा जी!

    @आतिश- आतिश जी सवाल तो उठा लेकिन जवाब अभी तक नहीं आया!अब क्या किया जाए?

    @संजय भास्कर-आपसे सहयोग यूँ ही मिलता रहे,बस यही तमन्ना है जी!

    निचोड़ यही कि अब तक सवाल जस का तस!घुमा-फिर कर नहीं,सीधा जवाब आन चाहिए!देश इंतज़ार में है!

    कुंवर जी,

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  16. मां तुझे सलाम
    वन्दे मातरम्
    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  17. मित्र! वन्देमातरम गाने भर से कोई देशप्रेमी नहीं होता है और देश के गद्दार वन्देमातरम गाकर देशप्रेमी नहीं बन सकते हैं. बंधू, आप मुसलमानों से क्या चाहते हैं? देश प्रेम या फिर वन्देमातरम?

    देश से प्यार देश की पूजा नहीं हो सकती है, और न ही देश की पूजा-अर्चना का मतलब देश से प्यार हो सकता है. हम अपनी माँ से प्यार करते हैं, परन्तु उस प्रेम को दर्शाने के लिए उनकी पूजा नहीं करते हैं. यह हमारी श्रद्धा नहीं है कि हम ईश्वर के सिवा किसी और को नमन करें, यहाँ तक कि माँ को भी नमन नहीं कर सकते हैं.

    जब कि ईश्वर ने पवित्र कुरान में कहा है कि अगर वह मनुष्यों में से किसी को नमन करने अनुमति की देता तो वह पुत्र के लिए अपनी माँ और पत्नी के लिए अपने पति को नमन करने की अनुमति देता.

    ईश्वर की पूजा ईश्वर के लिए ही विशिष्ट है और ईश्वर के सिवा किसी को भी इस विशिष्टता के साथ साझा नहीं किया जा सकता हैं, न ही अपने शब्दों से और न कामों से.

    राष्ट्रहित और धर्महित दोनों अलग अलग बातें हैं. आप दोनों को एक साथ करके नहीं देख सकते हैं. मेरे लिए दोनों का अपनी अपनी जगह बराबर महत्त्व है. "धर्म" ईश्वर का सत्य मार्ग है, और इस दुनिया में उसी मार्ग पर चलते हुए ईश्वर को प्राप्त करना मेरे जीवन का लक्ष्य है.

    भारत वर्ष को अपना देश मानने के लिए मुझे कोई ज़रूरत नहीं है वन्देमातरम बोलने की. यह मेरा देश है क्योंकि मैं इसको प्रेम करता हूँ, यहाँ पैदा हुआ हूँ, और इसके कण-कण मेरी जीवन की यादें बसी हुई हैं. इसके दुश्मन के दांत खट्टे करने की मुझमे हिम्मत एवं जज्बा है. इसकी कामयाबी के गीत मैं गाता हूँ एवं पुरे तौर पर प्रयास भी करता हूँ. चाहे कोई मुझे गद्दार कहे, या मेरे समुदाय को गद्दार कहे, उससे मुझे कोई फरक नहीं पड़ता. क्योंकि यह मेरा देश है और किसी के कहने भर से कोई इसे मुझसे छीन नहीं सकता है.

    आप बताइए क्यों बोलें हम वन्देमातरम?

    जवाब देंहटाएं
  18. शाह नवाज़-आपका स्वागत है जी!आपने गम्भीर विचारणीय विचार प्रस्तुत किये!चलो मै आपसे पूरी तरह से सहमत हो जाता हूँ!हमारे माँ-बाप,पति,बड़े भाई और देश-दुनिया सब को उस परमपिता परमात्मा ने बनाया है,हमारी तरह!ये सोच कर हम सब को छोड़ कर उसे ही सम्मान देंगे!बाकी किसी को नहीं!

    बस इतना बता दो प्रभु,इन सब का अपमान जिस आधार पर करूँशाह नवाज़-आपका स्वागत है जी!आपने गम्भीर विचारणीय विचार प्रस्तुत किये!चलो मै आपसे पूरी तरह से सहमत हो जाता हूँ!हमारे माँ-बाप,पति,बड़े भाई और देश-दुनिया सब को उस परमपिता परमात्मा ने बनाया है,हमारी तरह!ये सोच कर हम सब को छोड़ कर उसे ही सम्मान देंगे!बाकी किसी को नहीं!

    बस इतना बता दो प्रभु,इन सब का अपमान जिस आधार पर करूँ जबकि किसी ने मुझे पैदा किया है,किसी ने पाला है!

    !यदि अपमान नहीं कर के सम्मान करूँ तो उसे क्यों ना दिखाऊँ यदि किसी का भी नुक्सान उसमे नहीं हो रहा है तो?
    अभिवयक्ति का मतलब क्या है,प्रयोजन क्या है?

    और हाँ,ये लीबिया के राष्ट्रगीत में "अल्लाहोअक्बर" की पुकार बतायी गयी है,वो धार्मिक है या राष्ट्रीय?वहा के मुसलमान को गाना चाहिए या नहीं!या फिर मानो वहा कोई,इसाई या अदना सा हिन्दू हो तो वो क्या करेगा?

    आप उत्तर जरुर दोगे,ऐसा मेरा विश्वाश है!


    कुंवर जी,

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  19. Vand e mataram ko ager ek rashtraya geet mana jae aur iska maqsad Daedh ki izaat hai toh Kisee Muslim ko ismain koi aetraaz nahin.

    If the word means salutation it is fine, but if it means worship Muslims are forbidden to worship any other entity apart from God.

    Muslim sabhi dhatm ki izzat kerta hai, is rashtreeya gaan ko suntae waqt izzat main khada ho jana e main kisee muslim ko koi aetraaz nahin hoga.

    gandi politics ka boolbala hai aaj kal. Choti vhoti batoon ko masla bana liya jata hai, jiska talluq haqeeqat main na desh sae hai aur na rashtryagaan aur na musalmaan sae.

    Hidustaan ka her Musalmaan dekh praemi hai.Yaad rahae Musalmaan aur politician ka anter yaad rahae.
    Main blogger ki baat sae sahmat hoon ki isko sachcha musalmaan na padhe, kyoonki sachcha musalmaan desh bhakt hua kerta hai, usko yeh msla samajh main hi nahin aaega.

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  20. http://smma59.wordpress.com/2006/09/21/kalbe-sadiq-has-no-qualms-in-saying-vande-mataram/

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  21. आज काफी अच्छी खासी चर्चा चला दी आपने, पर हमें शायद थोडा सा अलग हटके भी सोचना होगा मेरे विचार में तो अगर राष्ट्र गीत किसी के धार्मिक विश्वास के आड़े आता है तो, इतनी बड़ी बात नहीं है की ये नियम ही बना दिया जाये की , "भारत में रहना होगा तो वन्देमातरम गाना ही होगा". लेकिन किसी के धार्मिक विश्वास अगर राष्ट्र सुरक्षा के आड़े आते हों तो तत्काल इसका निराकरण होना चहिये. चाहे फिर वह किसी भी धार्मिक विश्वास का अनुगामी क्यों ना हो. यह कहाँ की रीत रहे भारत में और गावे अरब के गीत"

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  22. अमित भाई साहब काफी देर कर दी आज!मै तो खुद अकेला सा महसूस कर रहा था!

    मै केवल यही पूछना चाह रहा था कि यदि हमारे मन में सम्मान है तो वो व्यवहार में क्यों ना हो!अभिवयक्ति में क्या परेशानी है जबकि उस से किसी का भी कैसा भी नुक्सान ना हो?मै अपनी माँ को सिर्फ इस लिए झुक कर प्रणाम ना करूँ क्योंकि वो भी भगवान् ने बनायी है,जैसे कि मै!बस ये ही एक कारण नहीं हो सकता माँ को ना प्रणाम करने का!

    क्यों जी?



    आज तो बस ये ही जानना चाह रहा था कि जब आज़ादी से पहले(एक विशेष समय तक) सभी हिन्दू-मुस्लिम इसे एक सुर में गा सकते थे तो आज ऐसा क्या हो गया जो वो पाक-परवरदिगार का अपमान बन गया!यदि वो अपमान है किसी का भी तो उसे नहीं गाना चाहिए!

    @vocie of people -आप राष्ट्रगीत को मसाला बता रहे है या प्रशन को!

    कुंवर जी,

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  23. कोई भी बिरादरी हो गाना हो गाओ वर्ना न गाओ इससे कोई फरक नहीं पड़ता है , खून तो तब खोलता है जब कोई गाने वालो को सजा देता है. ईश्वर किसी ने देखा हो या न देखा हो मगर मां को देखा होता है. माँ की पूजा ही नहीं. उस पर जान वार देनी चाहिए. अन्नदाता धरती, भारत माता को शत शत नमन. कोई भी ईश्वर माँ से बड़ा नहीं हो सकता है

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  24. मै केवल यही पूछना चाह रहा था कि यदि हमारे मन में सम्मान है तो वो व्यवहार में क्यों ना हो!अभिवयक्ति में क्या परेशानी है जबकि उस से किसी का भी कैसा भी नुक्सान ना हो?मै अपनी माँ को सिर्फ इस लिए झुक कर प्रणाम ना करूँ क्योंकि वो भी भगवान् ने बनायी है,जैसे कि मै!बस ये ही एक कारण नहीं हो सकता माँ को ना प्रणाम करने का!

    Read more: http://hardeeprana.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html#ixzz0lGp298eP

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  25. इतनी चर्चा के बाद पास इतना ही कहूँगा ....वन्दे-मातरम

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  26. Mera yah manana hai ki kisi desh ko apana mananey ke liye wahan ki manyata ko bhi apanana padata hai. Isliye ek baar yah sochana theek hai ki muslim janata ko bhi vande mataram gana chahiye. Bharat mein bahusankhyak janata (Hindu aur Sikh), tatha anek alpsankhyak varg jaise Isai, Parasi avam yahudi bhi matri sammaan par vishwaas rakahtey hai. Islam mein bhi maa ke liye ek vishesh sthan mana gaya hai. Parantu vyavhaar mein aisa nahin ho paata. Magar aisa nahin hai ki bahusankhyak varg mein mataon ka bahut samman ho raha hai tatha vahan streeyon ke khilaf koi anayay ya aparaadh nahi hai. Isliye yadi kisi bhi varg mein auraton ka samman nahi hai to sabhi ko ya to vande mataram gana band kar dena chahiye ya phir pahale gaane ki apeksha karaney ki aadat dalani chahiye. Yah gaa kar kuch nahin hoga ki dharati meri maa hai. Jaroorat iski hai ki jo maa hain unhey pahaley sammaan evam suraksha diya jaye. Saath hi har naagrik ko yah samajha diya jaaye ki yadi vah desh ki seva nahi kar sakatey to kam se kam unkey raastey mein na ayein jo desh ke liye kucch karana chahatey hon.

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  27. @अरविन्द मिश्रा जी-वन्दे मातरं!




    @डॉ. अनवर जमाल-ओ हो!डॉ. साहब!आपका स्वागत है जी,आप से बहुत सीखा है जी ब्लॉग्गिंग के बारे में!सही या गलत ये दूसरा विषय है!सारी धरती माँ है तो सलाम नहीं आया आपका?वैसे ये "सलाम" होता किस लिए है?




    @दिगंबर नासवा- आपका स्वागत है जी,वन्दे मातरम्!




    @बेनामी जी-आपका स्वागत है!आपका सवाल जायज सा है!गलत हर जगह है,लेकिन गलत को गलत कह कर उसका विरोध भी हर जगह हो रहा है,होना भी चाहिए!लेकिन सवाल तो ये है श्रीमान की सही को भी गलत बता कर उसका विरोध करना कहा तक उचित है!और यर अधिकतर हो कहा रहा है,कृपया गौर करे!

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  28. कुंवर जी मुझे अभी काफी कुछ जानना है. ज्ञान जिसके माध्यम से मिले हम तो उसी को नमन करेंगे. चाहे आप हों अथवा विकिपीडिया. अभी इस लेख को फिर से पढ़ना है. यदि संभव तो तो इसे मेल करें:

    pvasistha @neemanasia .com ; pratulvasistha ७१@gmail .com

    कृपया इस लेख को प्रेषित करें. इस लेख को मैं आगे वितरित करूंगा.

    जवाब देंहटाएं
  29. प्रतुल जी आप को ये लेख बढ़िया लगा और आप इसे आगे वितरित भी करना चाहते है.इस से आपकी मन की लगन और अगन दोनों का पता चल रहा है!इस लेख के जरिये जो मै जानना चाहता था वो जवाब मुझे नहीं मिला,सब मुख्य मुद्दे से हट कर जवाब दे रहे थे!

    मैंने इसकी दूसरी श्रृंखला भी तैयार की थी जिसमे मुख्य बात ही कही गयी थी,बस ये सोच कर कि जो जवाब अभी मिले है वही फिर मिलेंगे...पोस्ट नहीं की....

    कुंवर जी,

    जवाब देंहटाएं
  30. chalo milkar watan pe jaan dete hain.
    band kamre me wande matram kahne se kuch nahi hoga.



    anis azmi

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  31. bhaiya apni pehchaan kyo chupa li...
    shayad isi liyr band kamre me hi "vande-maatram" gaane ki baat keh rahe ho.....

    kunwar ji,

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  32. राष्ट्रगान — राष्ट्र के लिए गाया गया गीत. जिसमें राष्ट्र की उन्नति और उसमें रहने वालों के विकास की कामनाएँ हों, प्राथनाएँ हों तो सुख और साधनों के निरंतर बने रहने के लिए. 'हमारा वर्तमान में सांवैधानिक राष्ट्रगान' बेशक एकजुटता के लिए स्वीकारे जाने योग्य है. किन्तु उसका इतिहास तो पीड़ा ही पहुँचाता है. चापलूसी भरे कई अनुच्छेदों की इस लम्बी कविता में से एक अनुच्छेद ने 'राष्ट्र गान' के रूप में जगह पायी है. पूरा है :
    [१]
    जन गण मन अधिनायक जय हे
    भारत भाग्य विधाता
    पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा
    द्राविड़ उत्कल बंग
    विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा
    उच्छल जलधि तरंग
    तव शुभ नामे जागे
    तव शुभ आशिष मागे
    गाहे तव जय गाथा
    जन गण मंगल दायक जय हे
    भारत भाग्य विधाता
    जय हे जय हे जय हे
    जय जय जय जय हे
    राष्ट्रगान के बाद वाले पद
    पतन-अभ्युदय-वन्धुर-पंथा,
    युगयुग धावित यात्री,
    हे चिर-सारथी,
    तव रथ चक्रेमुखरित पथ दिन-रात्रि
    दारुण विप्लव-माझे
    तव शंखध्वनि बाजे,
    संकट-दुख-श्राता,
    जन-गण-पथ-परिचायक जय हे
    भारत-भाग्य-विधाता,
    जय हे, जय हे, जय हे,
    जय जय जय जय हे

    घोर-तिमिर-घन-निविङ-निशीथ
    पीङित मुर्च्छित-देशे
    जाग्रत दिल तव अविचल मंगल
    नत नत-नयने अनिमेष
    दुस्वप्ने आतंके
    रक्षा करिजे अंके
    स्नेहमयी तुमि माता,
    जन-गण-दुखत्रायक जय हे
    भारत-भाग्य-विधाता,
    जय हे, जय हे, जय हे,
    जय जय जय जय हे

    रात्रि प्रभातिल उदिल रविच्छवि
    पूरब-उदय-गिरि-भाले, साहे विहन्गम, पूएय समीरण
    नव-जीवन-रस ढाले,
    तव करुणारुण-रागे
    निद्रित भारत जागे
    तव चरणे नत माथा,
    जय जय जय हे, जय राजेश्वर,
    भारत-भाग्य-विधाता,
    जय हे, जय हे, जय हे,
    जय जय जय जय हे


    रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्व के एकमात्र व्यक्ति हैं, जिनकी रचना को एक से अधिक देशों में राष्ट्रगान का दर्जा प्राप्त है। उनकी एक दूसरी कविता अमार शोनार बांग्ला बांग्लादेश का राष्ट्रगान है।

    @ टैगोर जी यदि राष्ट्रगान लिखने के एक्सपर्ट थे तो तब ताज़ा-ताज़ा बने देशों के लिए भी लिख देते. अरे वे देश की सीमाओं से उबर चुके थे. उनपर देश की सरकार बदलने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था. उनकी गीति में देश की मुक्ति का स्वर नहीं है. उसमें केवल पद-पखारने की स्निग्धता है, भक्ति का नाद है. स्वागत में खड़े होने का संस्कार है. कुलमिलाकर चारण-कवि के पूरे लक्षण हैं. यदि अर्थ करना सहज न हो तो पूरे राष्ट्र गान वास्तविक अर्थ कर दूँ.
    @ कई मजहबों का देश हो जाने के कारण आज शुद्धता से मुख फेरना मजबूरी हो गयी है.
    राष्ट्रगान या गीत वे होते हैं. जिसमें उस शब्द की निहिती तो अवश्य हो जिसकी उपाधि उसे दी जा रही हो. अगर में हरदीप जी की आरती लिखूँगा तो ज़रूर हरदीप जी का नाम आना चाहिए फिर राष्ट्रगान नाम से जाना जाने वाला 'जन गन मन' अपने पूरे रूप में राष्ट्र शब्द को कहीं पिरो नहीं पाया है.
    @ दूसरी बात, यदि वैदिक राष्ट्र-प्रार्थना को यह स्थान दिया जाता तो विवाद पैदा होता. यह बात विवाद समाप्त करने को की गयी लगती है.
    @ जहाँ दो से अधिक योग्य राजा के उत्तराधिकारों हों वहाँ स्पर्धा समाप्त करने के लिए किसी अयोग्य या मूर्ख को गद्दी सौंप देना ही हल होता है. यहाँ भी ऐसा ही किया गया लगता है.

    आपके अन्य प्रश्नों पर कभी बाद में बात की जायेगी.

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  33. agar ishwar ke alawa kisi ko sajda karn adhara hai to, pir-fakiron ki dargaah par kyon sar ko jhukaya jata hai, kya wo khuda ke banaye nahin the ? agar wahan sar jhuka kar sajda karna gunah nahin hai to apni mata, pita ya anaya badon ke samaan me sar ko jhukana gunah nahin hoga, na hi desh ke sammaan me sar jhukana ya kisi bh tarah se usko maan dena gunah nahin ho sakta, ya sabhi muslimon ko pir fakiron ki dargaah par jaana chod dena chahiye.

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  34. आपने सच्चाई बहुत बढ़िया तरीके से सबके सामने रखकर गद्दारों का खूब पर्दाफास किया है।आपका लेख यहां भी है
    http://hardeeprana.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html

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