गुरुवार, 13 मई 2010

देखना कैसे-कैसे मर्द है यहाँ?-कुंवर जी,

बैलगाड़ी धेरे-धीरे टुमक-टुमक चल रही थी जी!अब वो तो बैलगाड़ी थी ऐसे ही चलनी थी!जितने यात्री उसमे बैठे वो बोर भी नहीं हो रहे थे,सभी को आदत थी उसमे सफ़र करने की!
उनमे एक भाई साहब कुछ अलग से दिख रहे थे!सौभाग्य से या दुर्भाग्य से घडी केवल उन्ही के पास थी वहाँ!किसी ने पूछ लिया कि समय क्या हुआ है?
उन्होंने घडी में देखा,बोले दो बजने वाले है!
उस बैलगाड़ी में कोई कही से सवार था कोई कहीं से!आपस में इतना परिचय भी नहीं था!और वो धीरे-धीरे टुमक-टुमक चल रही थी!
काफी देर बाद उस घडी भाई साहब से किसी ने फिर समय पूछ लिया!अबकी बार उनकी व्यक्तिगत समस्याओं का असर उनके चेहरे पर नजर साफ़ आया!उन्होंने घडी में देखा और बोले दो बजने वाले है!
सुनने वाले को अजीब तो लगा पर वो कुछ कह नहीं पाया!शायद शीष्ट्ता  आड़े आ रही थी उनकी!
पर घडी भाई साहब अपने व्यक्तिगत जीवन के अनुभवों में ही फसे पड़े थे अब भी!उन्हें नहीं पता वो क्या कह रहे है!उन पर कोई असर ही नहीं!
और बैलगाड़ी पर तो खैर क्या फर्क पड़ना था इस बात का!वो तो धीरे-धीरे टुमक-टुमक चल ही रही थी!


अब वो सभी अनजान थे और सभी पुरुष,सो एक-दूसरे से कोई ज्यादा बात-चीत भी नहीं हो रही थी उनके बीच!अब फिर किसी ने समय पूछ लिया उन घडी भाई साहब से!
पहले तो उसने समय पूछने वाले को लगभग घूरा,फिर अचानक उस पर कृपा करते हुए घडी को देखा और बोला-"दो बजने वाले है!"
अबकी बार सभी घडी भाई साहब को एक-टक देखने लगे!इस पर उसकी सोच में भी जैसे किसी ने 'ठहरे हुए पानी में पत्थर सा मार दिया हो'वाला काम कर दिया!उन्हें लगा कि शायद कहीं कुछ गलत है!उन्होंने घडी को देखा वो सच में दो बजाने ही वाली थी!


अब उसने सोचा,घडी जब घर से चला तो  ठीक थी,शायद अब खराब हो गयी होगी!लेकिन उसे पिछली दो-तीन बार समय पूछने वाली बात भी स्मरण हो आई थी!अब वो मन ही मन लज्जित तो हो रहा था पर और किसी को इस बात का पता ना चले ये भी चाह रहा था!
दुसरे लोग भी इस बात को भांप चुके थे!उनमे से किसी एक ने शिष्टता के घूघट को थोडा उघाड़ते हुए,हिम्मत कर के कह ही दिया."भाई साहब,पिछले ढाई घंटे से दो नहीं बजे क्या?"
अब तो घडी भाई साहब को जैसे सांप सूंघ गया हो!एक दम तो कुछ नहीं बोले!पर शायद हरियाणे के थे!तुरन्त-बुद्धि उन्हें कहा जाता है!
हर बात का जवाब वो अपने हिसाब से ही देते है!अब घडी खराब है,ये स्वीकार कर लिया तो जो घडी होने का रौब वो अब तक अप्रत्यक्ष रूप से जमा रहे थे,सब ख़त्म!अब वो भी बचाना था और इज्ज़त भी!
वो शान से बोले-"रै बावले,या मर्द की जुबान सै, जो एक बै कह दिया सो कह दिया,मिनट-मिनट पै ना बदलेगी!"


सभी कुछ भी कहने के लिए स्वतंत्र तो थे,पर क्यों खामख्वाह में बुराई ले,ये सोच कर चुप भी थे!इस से बैल गाडी पर भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा था!वो तो अब भी यूँ ही धीरे-धीरे टुमक-टुमक चल ही रही थी!


अपनी बात कहने के लिए एक पुरानी बात को अपने हिसाब से प्रस्तुत किया है!आशा है आप मेरे इस असफल प्रयास को समझने की सफल कोशिश करेंगे!




जय हिन्द,जय श्री राम,
कुंवर जी,

13 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल समझ गए भाई जी । हरियाणा के लोग मर्द कुछ ज्यादा ही होते हैं । इसलिए टस से मस नहीं होते । लेकिन सगोत्रीय विवाह के मामले में सब की अपनी अपनी समझ है । और उनकी भी है ।
    कहानी अच्छी है ।

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  2. सच कहें हमें समझ ही नहीं आ रहा था अब आ गया है पर डर है कहीं गलत न हो इसलिए कुछ नहीं कहेंगे
    मर्द की जुवान है क्या

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  3. sahi kaha kuch log lakeer ke fakeer hi the hain aur rahenge...

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  4. re bavle, haryanvi mard ki tippani sai, ek bai kar di, minute minute pe thode hi karenge

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  5. @डॉ. दाराल जी-आपका स्वागत है!भावो को समझने के लिए शुक्रिया!खापो में जो उलटे-सीधे फतवे टाइप के जो फैसले हो रहे है वो शायद फैसले करने वालो की जिन्दंगी के कुछ एक बुरे अनुभवों की यादो का ही परिणाम है!जब फैसला करना होता है वो शायद उन से बहार ही नहीं निकल पाते!जब तक होश आता है तो 'जो कह दिया सो कह दिया' वाली बात हो जाती है!

    @अंजुम शेख जी-आपका स्वागत है जी!



    @सुमिल जी,@दिलीप जी-आपको तो सब पता ही है!आप नहीं समझोगे तो और कौन समझेगा जी!

    यहाँ ब्लॉग जगत में कुछ लोग लिखते हुए अपने बुरे अनुभवों से बहार नहीं आ पाते,और बिना सोचे समझे लिखे चले जाते है!और हम शालीनता की चुनर ओढ़,दिलीप जी की चूड़ियाँ पहन चुप रहते है!

    जब तक कोई हिम्मत कर के उन्हें हिलाता है तो अपनी रही-सही इज्ज़त बचाने के लिए खुद को सही साबित करने पर तुल जाते है!

    कुंवर जी,

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  6. @इस्लाम की दुनिया जी,@शास्त्री जी,@संगीता स्वरूप जी- आप सब बहुत बहुत धन्यवाद जी,मुझ तुच्छ के लिए समय निकाल कर अपने अमूल्य विचार प्रस्तुत करने के लिए!



    @rd भाई लगातार आते रहा करो भाई!

    मै अकेला सा पड़ जाता हूँ आप सब के बिना!



    कुंवर जी,

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  7. समझ तो हम भी गए भाई...आखिर हरियाणे के जो ठहरे :-)

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  8. वाह भाई कुंवर जी,बैलगाडी तो इब ठु्मक ठुमक कै ही चाल रही सै,
    म्हारे भी बात घणी देर पाछै समझ म्हे आया करे, पण समझ आ ज्या तो उसका कोइ तोड़ कोनी।

    राम राम

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