आरम्भ आवेश से कर के अन्त को जूझता हूँ,
जब कुछ सुलझा नहीं पाता तो खुद पहेली बना उन्हें ही बूझता हूँ!
समय ही नहीं मिल रहा है आप सब से निरन्तर मिलते रहने का !जब कभी भी समय मिलता है तो जो कुछ पहले लिखा गया होता है उसे पढ़ कर ही संतुष्ट होने की कोशिश करता रहता हूँ!पर ये संतुष्टि..........पता नहीं कब और कैसे मिलेगी...???
जहाँ मै रूक जाता हूँ,या मेरा मस्तिष्क कुछ भी कहने-करने से मना कर देता है;आज कुछ ऐसा ही आप सब सुधिजनो के बीच प्रस्तुत है कृप्या अपने ज्ञान और अनुभव की यहाँ बरसात करें......जिस से मुझ अयोग्य को कुछ योग्य बाते पता चले!
वो शब्द क्या हो जिसका ही बस उच्चारण हो,
साधना का भी तो कोई साधन हो,
भेद करने का भी तो कोई कारण हो,
अद्वैत तो समझू जो कोई समक्ष उदाहरण हो,
अब कैसे मेरे भ्रमो का निवारण हो........?????
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुंवर जी,