रविवार, 19 दिसंबर 2010

वो जो अपनों में पराया सा,गैरों में ख़ास क्यों है?

वो जो अपनों में पराया सा,
गैरों में ख़ास क्यों है?
सब जब पहले जैसा है तो
मन उदास क्यों है?
पलके गीली है और,
इन आँखों में प्यास क्यों है?
जीवन जीने के सपनो में,
खुद को मिटाने का भास क्यों है?
"हरदीप" आँखे खुल चुकी है,
फिर भी खुशियों की आस क्यों है?

जय हिन्द,जय श्रीराम.
कुंवर जी,


3 टिप्‍पणियां:

  1. कुंवर जी
    "ला-जवाब" जबर्दस्त!!
    शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।

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  2. "हरदीप" आँखे खुल चुकी है,
    फिर भी खुशियों की आस क्यों है?
    ...........बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  3. संजय भाई शुक्रिया....

    कुंवर जी,

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