गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

कोई संसद के बहार से हमला करता है... और कोई अन्दर से..!(कुँवर जी)

देश की जो रीढ़ है लोकतंत्र.,(?) वही सबसे बड़ी कमजोरी मुझे दिखाई पड़ती है!कम से कम पिछले कुछ दिनों से तो ऐसा ही दिखाई दे रहा है! कोई घर से बहार का मारे तो दर्द होता है वो तो होगा ही, पर जब कोई घर का ही मारता है तो दुःख भी होता है साथ में!

कल जैसे लोकतंत्र का मज़ाक बना उस से बहुत दुःख हुआ, ना कुछ कहते बन रहा है, ना चुप रहते ही बन रहा!पता नहीं रोटी ही खाते है या क्या खाते है...?

जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

प्रतिक्रिया......(कुँवर जी)

अभी अनामिका जी को यहाँ पढ़ा तो   
सच में बोलती ही बंद हो गयी!कई दिन बाद स्वतः ही कुछ मौन से फूटा!आज वो ही आपके समक्ष!आज हम सब बुत से बन गए है!कोई प्रतिक्रिया कर ही नहीं रहे है है किसी भी कुरीति के विरोध में!बस आज यही....


देशवासियों तुम मूक ही रहना....
जब खुद की बारी आएगी..
तब आत्मा तक चिल्लाएगी,
सब चीख-ओ-पुकार तुम्हारी
सुन कर भी अनसुनी हो जायेगी,
तब तक
देशवासियों तुम मूक ही रहना....
 

तड़पती-तरसती आँखे तुम्हारी
जैसे अब तुम मूक हो,
तब सब को मूक देख पछताएगी!

बिना पछताए कहा 
हमारे बात समझ में आएगी!
तो 
तब तक
देशवासियों तुम मूक ही रहना...!


जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

सौ संस्कारों के ऊपर भारी मजबूरी एक .... (कुँवर जी)

सौ संस्कारों के ऊपर भारी मजबूरी एक
आचरण बुरा ही सही पर है इरादे नेक!

खुद बोले खुद झुठलाये जो करे कह न पाए
अजब चलन चला जग में चक्कर में विवेक

भ्रष्टाचार से लड़ाई में हाल ये सामने आये
विजयी मुस्कान लिए सब रहे घुटने टेक!

मेहनत से डर कर खुद को मजबूर कहलवाए 
जब तक मौका न मिले तब तक है सब नेक!

जय हिन्द, जय श्रीराम, 
कुँवर जी

गुरुवार, 30 अगस्त 2012

बाकि देश जाए भाड़ में!.....(कुँवर जी)

राम राम जी, कई दिनों के बाद आज कुछ लिखना चाहता हूँ!असल में मै  नहीं चाहता ऐसा लिखना पर क्या करूँ,जो दिखता कलम वो ही तो लिखता है! ऐसा ही कुछ कही पढ़ा या सुना था शायद..... शुरूआती पंक्ति तो पक्का!आगे कुछ-कुछ अपने आप जुड़ता चला गया!


सब लगे है अपने ही जुगाड़ में
बाकि देश जाए भाड़ में!

अपने ही हित साधने में लगा हर कोई
समाज सेवा की आड़ में,
बाकि देश जाए भाड़ में! 

ज़मीर मूर्छित पड़ा है और सब राम है
संजीवनी कौन ढूंढे पहाड़ में,
बाकि देश जाए भाड़ में!

कब मौका मिले कब काटे गला किसी का
और आपस ही के लाड़ में,
बाकि देश जाए भाड़ में!


जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

ये सौभाग्य-दुर्भाग्य क्या है......?(कुँवर जी)

सौभाग्य
सिकुड़ता सा
लगा तो
फैली माथे की सलवटें,
अब
ये सौभाग्य-दुर्भाग्य क्या है...?
सब भाग्य है बस.....


जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

शुक्रवार, 29 जून 2012

क्या धरा संतो से खाली हो गयी है?....(कुँवर जी)

क्या धरा संतो से खाली हो गयी है?
यदि नहीं तो आज सन्त कौन है या कौन हो सकता है?

आभी समय ऐसा हुआ जाता है कि हर मनुष्य तुरन्त परिणाम पाना चाहता है!उसे कैसे-क्या करना है इसका ज्ञान नहीं है!फिर अध्यात्म या धर्म सम्बन्धी विषय की जानकारी भी उसे नहीं है,कम से कम जितनी होनी चाहिए उतनी तो है ही नहीं!कही सुनी बातों पर ही वह भागा फिरता है!उसके जीवन में परेशानिया जितनी है उस से भी अधिक उसकी जरूरते है,जिनको पूरा करने के चक्कर में किसी ओर बात पर वो ध्यान नहीं दे पा रहा है!वो चाहता है कि उसके जीवन की भौतिक जरूरते पूरी करने वाली दिनचर्या भी यथावत चलती रहे और आनन्-फानन में अध्यात्म की जानकारी भी ले ले,या सीधे ही परमात्मा का साक्षात्कार भी कर ले,क्योकि उसने सुना है कि यही परम अवस्था है,यही हमारे होने का उद्देश्य है!
अब समस्या यह है कि उसे इस विषय के बारे में केवल सुना है,तेरे-मेरे के मुह से,जिन पर उसे इतना विश्वाश नहीं है!ऐसे में उसे ध्यान आता है कि बिन गुरु भी निस्तार नहीं है!वही उसे सच्चा ज्ञान देगा जो उसकी भौतिक जरूरतों को पूरा करते हुए परमात्मा-प्राप्ति का मार्ग पक्का करेगा!

यहाँ एक और भावना उभर कर आती है,वो है "आस्था और श्रद्धा" की! हमारी अपने गुरु में पूरी आस्था होनी चाहिए,कोई भी शंका हमारी श्रद्धा से ऊपर नहीं होनी चाहिए!फिर गोबिंद से पहले गुरु-पूजन भी बताया है!अब यदि कोई अपने माने हुए गुरु में अंध-विश्वाश भी कर ले तो उसकी कहा तक गलती है!यदि विश्वाश ना करे तो उनकी परीक्षा लेना भी तो उचित नहीं लगता है!
हाँ!विश्वाश करने,उसे अपना गुरु मानने से पूर्व हम उसकी जांच-परख कर सकते है!लेकिन आज जनसँख्या ही इतनी हो गयी है कि बस अड्डा,हस्पताल,रेलवे स्टेशन और (यहाँ तक के)हर धर्म-स्टेशन  पर बहुत बड़ा जन समूह दिखाई देता है!किसी पर भी विश्वाश कर लेने का एक बहुत बड़ा कारण ये देखा-देखी भी है!सोचते है,अब इतने सारे लोग पागल तो ना होंगे!
उसके ऐसा होने के कारणों पर अलग से चर्चा चलनी चाहिए!

लेकिन असल प्रशन जो अभी चित में कुलाचे मार रहे है वो ये कि,माना पाखण्ड ने अपने पैर पूरी तरह से पसार रक्खे है,लेकिन  जब पहले भारतवर्ष में ऋषि-मह्रिषी हुए है और होते रहे है तो आज भी कोई ऋषि-मह्रिषी कहलाने के लायक  व्यक्तित्व अस्तित्व में है या नहीं?क्या जो दिखता है वो सब पाखण्ड ही है?और जो पाखंडी अभी धर्मगुरु बना फिर रहा है(चाहे वो कोई भी हो) क्या ये उस पर परमात्मा कृपा नहीं है,और जो उसके बहकावे आ रहे है उन पर किस कि कृपा हो रही है?

जय हिन्द,जय श्री राम,
कुँवर जी,

मंगलवार, 26 जून 2012

हाय संस्कृति......!(कुँवर जी)

 नवीन कॉलेज  की छुट्टियों में अपने भाई विकास के पास दिल्ली आया हुआ था!विकास यहाँ नौकरी कर रहा था पिछले कई सालो से!अब वो तो सुबह निकल गया ऑफिस,पीछे नवीन पांचवे माले पर बने गाँव की रसोई से भी छोटे या उतने ही बड़े कमरे में टीवी के रिमोट को दबाता रहा!दोपहर का समय तो जैसे-कैसे कट गया,पर शाम को..... रोया  तो नहीं था वो; पर..... !

घूमने की सोच कर बहार निकला,थोडा  भटकने पर ही एक पार्क उसे दिखाई दिया!वहा पहुँच कर उसने थोड़ी खुल कर सांस ली,शायद वही उसे कुछ पेड़ दिखे थे पूरे रस्ते में!कुछ बुजुर्ग वहा टहल रहे थे, कुछ टोली बना ताश खेल रहे थे!एक कोने में दो पोल पर नेट बंधा था,वालीबाल का था शायद,पर खेलने वालो की बाट  जोह  रहा था!वहा  आने-जाने वाले को वो बड़ी गौर से देख रहा था!उसने महसूस किया जैसे बुजुर्गो को छोड़ सभी किसी जल्दबाजी में है!भाग रहे है बस!अधिकतर तो कान पर फोन चिपकाए है!कोई परिचित दिखा तो चलते-चलते ही हाथ मिलाया अथवा तो दूर से ही मुस्कुरा कर हाथ हिला दिया!और सामने वाले ने भी चलते-चलते ही हाथ हिलाया और... चला गया!हाँ,हाय जरूर बोल रहे थे!

नवीन को ये बात बहुत ही अधिक अजीब लगी,बताओ... किसी को किसी से बतियाने का भी समय नहीं है!बस दूर से ही हाथ हिला दिया..?और सामने वाला भी शायद ऐसा ही चाह रहा हो!रात को खाना खाते समय उस से रहा न गया और जो देखा था उस पर वयंग्य करते हुए बोला,"भाई;यहाँ आकर एक नया फैशन देखा है!कोई जानकार यदि राह में मिल जाए तो फोन कान पर लगाओ और हाथ हिला दो,हाय!सामने वाला भी सोचता है कि चलो शुक्र है दूर से ही मिल लिए नहीं तो पता नहीं कितना समय खराब करवाता,तो वो भी इस से खुश होकर दूर से ही हाथ हिला,हाय  कर एक और चल पड़ता है!ये भी खूब है,इसे तो नाम देना चाहिए हाय संस्कृति! " 

जो ग्रास मुह में जा रहा था उसे वही रोक कर विकास नवीन को देखता है और फिर खाने लग जाता है!भोजन करने के पश्चात जब दोनों बहार टहलने के लिए निकलते है तो विकास नवीन के काँधे पर हाथ रख कर बोलना शुरू करता है.."तुम ने बिलकुल ठीक पहचाना इस हाय संस्कृति को नवीन!पर थोडा सा गलत समझ गए इसके बारे में!यहाँ गाँव की तरह किसी के पास इतना समय नहीं है कि वो हर मिलने वाले परिचित से जितना चाहता है उतना मिल पाए!हर कोई घर से 10-11  घंटो बाद ऑफिस के तनाव से लगभग निकलते हुए घर की और भाग रहा होता है!घर पर उसके परिजन किस हाल में है,घर क्या कुछ ले के जाना था,क्या ले लिया है सब उधेड़बुन भी चल रही होती है!ऐसे में अपने लिए समय नहीं निकल पाता पर  जो संस्कार हम में है कि हर परिचित के कुशल-क्षेम की जानकारी लेते रहने के वो अब भी काम रहे होते है!
 हाँ आराम से बतियाने का समय नहीं है पर,... पर दूर से ही हाथ उठा कर सामने वाले से उसका कुशल-क्षेम जाने चाह हम जाहिर करते है!दूर से ही मुस्कुरा कर उसे कहते है कि,मेरी चिंता मत करना मै ठीक हूँ,आप अपने बारे में बताये! सामने वाला भी हाथ उठा कर हमें महसूस करवाता है वो भी मजबूर है,समय उसके पास भी नहीं है पर ठीक वो भी है!"

नवीन जैसे सांस लेनी भी भूल गया हो पर सब सुन और महसूस जरुर कर रहा था!अब उसके मन थोड़ी ग्लानी थी जो विकास ने भी अनुभव की!सामने ही कुल्फी वाला था,विकास ने दो कुल्फी ली और गाँव की बात छेड़ दी!दोनों बतियाते हुए वापस कमरे की और चल दिए!

जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,  

मंगलवार, 12 जून 2012

कुछ लपटे तो वहा भी उठ रही थी!.....(कुँवर जी)

हर और आग थी,
जलन थी,
धुआँ...

बड़ी मुश्किल से एक कोना ढूँढा ...
बैठे,
कुछ अपने दिल में झाँका,
देखा...
कुछ लपटे तो वहा भी उठ रही थी!
अब..?


जय हिन्द,जय श्रीराम!
कुँवर जी, 

बुधवार, 16 मई 2012

आश्चर्य ही आश्चर्य ...... (कुँवर जी)

प्रकाश-पुन्ज को 
अभी निहारा भी न था
जी भर के,
ना समेटा ही था अभी
आश्चर्य 

आँखे खुलने का,
कि तभी
शाम का डर समां गया मन में,
सूरज के भी ढलने का रोमांच
डरा ही तो रहा था!

तम के वहम से सहमा मन
और भी चकित हो गया
जब
देखा कि
तम को भेदती हुई
वो महीन सी किरण
विराट हुई जाती है
फूटी है मुझ ही से...

जय हिन्द,जय श्रीराम!
कुँवर जी,

शुक्रवार, 11 मई 2012

शब्द गूंगे हुए तो तड्पी कलम...(कुँवर जी)


शब्द गूंगे हुए तो तड्पी कलम...

एक पल के लिए..
फिर सोचा
इसमें मेरा तो कोई दोष  नहीं!


शिथिल हुए हाथ तो रोया मन
एक पल के लिए
फिर सोचा
मैंने तो खोया अपना होश नहीं!

न कुछ कर-कह सके
तो रोई  आत्मा,
पर इस से ही तो 

ख़त्म हुआ उसका रोष नहीं!

जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

सोमवार, 23 अप्रैल 2012

शब्द फूटे तो कहा धरूँ मै....(कुँवर जी)

 जो मुझे पसंद है
वो तो
होता नहीं..
जो हो रहा है
उसे ही पसन्द न करूँ तो
क्या करूँ मै!

झेल गया जब
मै
जो बीत चूका,
अब तो जो  भी बीते
भला उस से
क्या डरूँ मै !

गैरो से बच कर 
आया था 
अपनों की ओट में,
अब अपनों से
बचने के लिए
किसकी ओट करूँ  मै!


बहुत पीता हूँ
आंसुओ को
बिना शोर के,
ये शब्द
न माने मेरी,
फूटे तो
इन्हें कहाँ  धरूँ मै! 





जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर  जी,

शनिवार, 21 अप्रैल 2012

भावनाओ के बंजर में भी फूल खिलते है....(कुँवर जी)

भावनाओ के बंजर में भी
फूल खिलते है
एक सहरा
तो अपना
बना के देखो! 
पंक्तियों की कोंपले
भी फूटेंगी
कुछ शब्द तो 
रेत  में
बिखरा के देखो!
कविताओ की फसल
भी लहलहाएगी खूब
संवेदनाओं से
उन्हें
सींच कर तो देखो!


जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,





गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

गौहत्या विरोध और इस विरोध का विरोध....(कुँवर जी)

एक वें लोग भी है जो विदेशो में रह कर भी अपने देश में चेतना जगाने के लिए यथासंभव प्रयास करते रहते है और एक ये भी है जो अपने देश में ही रहते हुए भी स्वयं तो कुछ करते नहीं अथवा कर नहीं पाते परन्तु जो इसके लिए चिंतित है उनकी निंदा करने के लिए समय अवश्य निकाल लेते है!

आदरणीय दिव्या जी(Zeal ) जी ने गौहत्या के विरोध में निम्न चित्र वाली पोस्ट लगाई!


अनवर जमाल साहब ने अपने स्वभाव के अनुसार उस पोस्ट का पंचनामा   खूब किया!यही पर कुमार राधारमण जी ने दिव्या जी की इस पोस्ट समेत कई पोस्ट निंदनीय बतायी!तो हमने वहा ये सवाल किया कि
"चलो डॉ. साहब तो अपना धर्म निभा रहे है;मेरा सवाल आदरणीय कुमार राधारमण जी से ये है.....
कृपया कर बताये की उस पोस्ट में आपको क्या आपत्तिजनक लगा....???"
अब आदरणीय हकीम अनवर जमाल साहब जी....
यदि आपको शर्म न आये तो कृपया कर बताये की आपको मेरी टिप्पणी में ऐसा क्या आपत्तिजनक लगा कि न केवल आप ने मेल पर इसकी मुझे शिकायत की,न केवल ऐसा न करने कि नसीहत दी बल्कि मेरी टिप्पणी डिलीट भी कर दी!

मै आपसे अपेक्षा कर सकता हूँ कि आप गुपचुप तरीके से मेल पर ही मुझे नहीं समझायेंगे अपितु यही मेरी असमंजस का निवारण कर देंगे! 



जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर  जी,

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

लगता है कांग्रेस सरकार ने भगवान् के साथ मुलायम या ममता के जैसे कोई गठबंधन कर लिया है!

लगता है भगवान् ने भी कांग्रेस सरकार को समर्थन दे दिया है या फिर कांग्रेस सरकार ने भगवान् के साथ मुलायम या ममता के जैसे कोई गठबंधन कर लिया है!तभी तो..... जब गेहुओ को पानी की जरुरत थी तब सरकारसही बिजली नहीं दे रही थी और वो भगवान् भी बारिश नहीं कर रहा था! और अब जब फसल कटाई के लिए बिलकुल तैयार है तब बिजली भी पहले से सही है और बारिश.... उसमे परमात्मा ने मौज कर रखी है!रही-सही कसर औलो ने पूरी कर दी!

पिछले कई महीने जिस फसल के लिए किसान दिन-रात एक कर के मेहनत कर रहा था और जब उसका फल मिलने ही वाला था....लगभग मिल भी गया था....क्योकि खेत में सोने के जैसे लहलहाती गेहूं की बैल देख कर उसकी सारी थकान और दिक्कत जो उसने पिछले कुछ महीनो में उठाई थी बहुत छोटी लग रही थी उसे.....पर ....!

नया सूरज उगते ही जो फसल लहलहा रही थी कल तक आज बरसात और औलो की मार से भारत की जनता के जैसे ज़मीन पर बिछी पड़ी थी और देख रही थी किसान की और जो की भगवान् की और टकटकी लगाए हुए था!

भगवान् की ये कांग्रेस नीति..... किसान को कही का नहीं छोड़ा!



जैसे भारत की जनता चुनावों से पहले खूब जोश दिखाती है...कांग्रेस को चुनती है फिर मंहगाई ,भ्रष्टाचार,घपले-घोटाले की बारिश और ओलावृष्टि से ज़मीन पर बिछ जाती और फिर कांग्रेस सरकार की ओर देखती है जो की भगवान् की ओर देख रही होती है....
 
 
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

बुधवार, 4 अप्रैल 2012

एक कर्म हमारा पूरा जन्म बिगाड़ देता है और उसका फल न जाने कितने जन्म.........(कुँवर जी)

हम जो भी कर रहे है है या कर चुके है अथवा तो करने वाले है,सबका परिणाम तभी...करते ही पाना चाहते है!कई बार तो उसके गलत परिणाम की आशंका से उसके फल को ही नहीं चाहते!और तब प्रसन्न भी तो होते है जब उसका परिणाम हमें मिलता दिखाई नहीं देता!कई बार कुछ अच्छा परिणाम पाने हेतु जो कर्म हम करते है और जब वैसा ही परिणाम हमें हमारी आवश्यकतानुसार नहीं मिलता तो दुखी भी होते है!

पर कौन जाने कि कोन सा कर्म हम फल पाने के लिए कर रहे है अथवा ये कर्म पिछले किसी कर्म का फल है???अब पिछला कितना...ये भी प्रशन!इसी जन्म का या पिछले किसी और जन्म का..??और फिर कहते है कि हम कुछ कर ही नहीं सकते,सब वो"

अब मै जहा उलझता हूँ वो ये बात है कि यदि उपरोक्त बाते सत्य है तो..... हम कर क्या रहे है?


एक कर्म हमारा पूरा जन्म बिगाड़ देता है और उसका फल न जाने कितने जन्म.......????

बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

फिट्टे मुह!फिर घर फोन मिल गया......!!!!(कुँवर जी)



फोन की घंटी बजती है.......बजती रहती है...... और फिर तंग आकर श्रीमती जी को फोन उठाना ही पड़ता है!उधर से बहुत ही प्यार और दुलार भरी आवाज आती है..."जान.... काफी देर से कॉल नहीं की थी...सोचा आप मिस कर रही होंगी सो कॉल कर ली,कैसी हो.!"


श्रीमती जी तनी भृकुटियो को थोडा आराम देते हुए..."मै तो ठीक हूँ, वो पंद्रह मिनट पहले जो गाली-गलौच की जा रही थी उसका क्या.....????

उधर से.."फिट्टे मुह!फिर घर फोन मिल गया......!!!!


राम राम जी,
कुँवर जी, 

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

कहा है साहस खुद को उघाड़ने का....(कुँवर जी)

सब विषयो,
शीर्षकों,
मुद्दों,शब्दों को
इक्कठा कर
जब
कुछ लिखने  की सोचता हूँ
तो एक-एक कर के
सब दूर जाते दिखते है....
बस
रह जाता हूँ
खड़ा मै अकेला
और
बात मुझ पर आकर
रुक ही जाती है....

और फिर क्या....

सब मौन....

कहा है साहस खुद को उघाड़ने का....????

कुँवर जी,

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

ताकि जो जैसा है वो रहे वैसे ही...

ओस की बूंदे जम गयी थी पलकों पर,
अब झपकते तो मोती झर नहीं जाते,


साँसों में भर ली थी सुगंध जीवन की.
अब उन्हें छोड़ते तो मर नहीं जाते,


सपनो में बदल गयी थी जिंदगी,
जागते तो सपने बिखर नहीं जाते,


तभी तो....

तभी तो
हमने रोक ली थी सांस,
झपकने नहीं दिया पलकों को
और न खुलने दी आँख सो कर एक बार!
ताकि जो जैसा है वो रहे वैसे ही...
वैसा ही...! 


कुँवर जी,
जय हिंद,जय श्रीराम!

गुरुवार, 26 जनवरी 2012

हौसला तो कर फिर देख,जिंदगी कैसे रुख बदलती है....(कुँवर जी)

राम राम जी... आज एक और गणतंत्र दिवस आया....  कल से ही देशभग्ति वाले सन्देश मोबाइल पर आने आरम्भ हो गए थे.....आज पूरा दिन जारी रहे..... चाहे वो सन्देश कैसी भी भावना अथवा अभावना से प्रेषित कए जाते हो पर ये भी सत्य है कि कुछ एक सन्देश तो सच में   जज्बे को हिलाने वाले होते है.... और फिर आजकल तो बाबा रामदेव जी और अन्य क्रांतिकारियों ने माहौल कुछ ऐसा बनाया दिया है कि हर एक भारतीय स्वयं को गणतंत्र दिवस का हिस्सा सा मानने लगा है.....किन्तु कुछ एक ऐसे भी जिन्होंने ऐसा माहौल बनाने कि ठान राखी है जिस से कि हर एक भारतीय को लज्जा...... अब क्या जिक्र करे उन सबका ऐसे अच्छे उत्सव-पर्व पर....!


पर कुछ न कुछ है जो इस पर्व को उस शान-ओ-शौकत से मनाने से अभी  रोक तो नहीं रहा है पर...... कुछ सोचने पर विवश अवश्य कर रहा है.....!
मै स्वयं को रोक नहीं पा रहा हूँ....

वन्दे मातरम्....
आँख का पानी नसों में पहुँच गया है....
सो न आंसू आते है न नसे ही फड़कती है....


मै ये नहीं कहता की खून पानी हो गया है,
कुछ बूंदे है अभी भी,जो दिल में धड़कती है!


 पौरुष चूका तो नहीं पर कहा है....?
पुरुष हूँ,यही बात आँखों में रड़कती  है!


हालात हावी है हसरतों पर क्यों भला,
हौसला तो कर फिर देख,जिंदगी कैसे रुख बदलती है!




जय हिन्द,जय श्री राम!
कुँवर जी,

रविवार, 22 जनवरी 2012

गुडगाँव में पूज्यनीय श्री मोरारी बापू जी रुपी मेघ श्री रामचंद्र जी की कृपा बरसा रहे है..... बोलो सियापति रामचंद्र की जय...

राम राम जी,

श्री गुरुचरण सरोज रज,निज मन मुकुर सुधारी!
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु जो दायक फल चारी!!
बुद्धि हीन तनु जान के सिमरौ पवनकुमार!
बल बुद्धि विद्या देहू मोही हरहु क्लेश-विकार!!


आज दूसरा दिन है यहाँ परम पूज्य मुरारी बापू जी के सानिध्य में रामचरितमानस कथा के सुनने का!और देखिये वो कहते है की केवल सुनना मत......द्रष्टा बनना!है न कमाल.....सुनने के लिए जो है उसका द्रष्टा बनने को कहते है और भावो में भिगो देते है श्रोता को....मैंने ऐसा अनुभव किया दो दिनों में वहां!


गुडगाँव  में पूज्यनीय  श्री मोरारी बापू जी रुपी मेघ श्री रामचंद्र जी की कृपा  बरसा रहे है..... हम जैसे तुच्छ और नालायको को बिना कोई श्रम-साधना के ही ऐसा अतुल्य अवसर मिल गया है......ये विचार कर ही आश्चर्य होता है और जब उनके दर्शन साक्षात हुए तो...... क्या कहे.....
  मै सागर तो नहीं था पर लहरें तो थी तन में..
मै मोम भी तो नहीं था पर पिघल रहा था जैसे....


वैसे तो इनका नौ दिन का कार्यक्रम है यहाँ....कहते है श्रीरामचरितमानस का पाठ नौ दिन ही चलता है......पर मुझ जैसे अयोग्य को नौ में से दो दिन भी वहाँ उपस्थित होने का सौभाग्य मिला....ये क्या कम है.....! ये एकदम से ऐसे हो गया जैसे के कुआं प्यासे के पास चला आया हो.....सच में कलयुग है!

कल से पुनः नौकरी...... मन से नहीं तो क्या हुआ.... तन से तो नौकरी करनी ही है..... तो कल से कथा नहीं नौकरी...२६ को अवकाश है.....मौका मिला तो तब.....

पवनतनय संकट हरण मंगल मूर्ती रूप!
राम लखन सीता सहित हृदय बसों सुरभूप!!
बोलो
सियापति रामचंद्र की जय...
उमापति महादेव की जय...
पवनपुत्र हनुमान की जय...

जय हिंद,जय श्रीराम,
कुंवर जी,

शनिवार, 21 जनवरी 2012

मयंक जी असल में मुझे भाषा ज्ञान बहुत अधिक नहीं है.....

राम राम जी....
आदरणीय मयंक जी 
  
मैंने आपकी टिपण्णी पढ़ी...कुछ देर के लिए सोचा जरूर,सोचना पड़ा...अब तक जैसे मुझे चाहिए थे वैसे ही कमेन्ट आ रहे थे...ये पहला ऐसा कमेन्ट रहा अब तक जो मुझे झकझोरने वाला रहा...... !

सर्वप्रथम मै आपका हार्दिक धन्यवाद करता हूँ कि आप मुझ जैसे तुच्छ और निम्न स्तरीय को पढने के लिए अपना अमूल्य समय खर्च करते हो!सच में आँखों में पानी छलक आया था एक बार तो!

अभी; मै आपसे समय पर संपर्क नहीं कर पाया था उसके लिए हृदय से खेद व्यक्त करता हूँ!सच मानिए,बहुत कम ही इन्टरनेट को समय दे पा रहा हूँ!आपको पढ़ जरुर लिया था पर संपर्क ही नहीं कर पाया....इसके लिए एक बार फिर खेद है!

और जो आपने कहा कि कई भाषाओ का मिलन धार कम करता है तो....इसके लिए मै यही कहना चाहूँगा कि असल में मुझे भाषा ज्ञान बहुत अधिक नहीं है!बस आम बोलचाल की भाषा की ही जानकारी अधिक है,जानकारी भी क्या बस जो कुछ पढ़ा-सुना है वही बस....जिसमे उर्दू,फ़ारसी के शब्द कुछ ऐसे मिले हुए है जैसे कि सब एक ही है...कुछ अलग है इसका पता ही नहीं चलता..और फिर मन में जो भाव जैसे भी आते है वो वैसे के वैसे ही कागज़ पर उतर आते है..मै उनमे अधिक कुछ परिवर्तन नहीं कर पाता....और धार.... उसका तो मुझे पता भी नहीं चलता कि है भी या नहीं..... बस मन के प्रवाह को ज्यो का त्यों शब्दों के प्रवाह में परिवर्तित करने का प्रयास सदा बना रहता है.....


वैसे ये सब मै केवल आप तक पहुंचाने के लिए ही लिख रहा था किन्तु अज्ञानता और लापरवाही वश मुझसे आपका वो अमूल्य कमेन्ट डिलीट  हो गया...इसके लिए मै क्षमा मांगने के योग्य भी नहीं हु फिर भी मुझे विश्वाश है कि आप मुझे क्षमा कर देंगे... सो इसे मै सार्वजनिक रूप से आपसे क्षमा मांगने और खेद व्यक्त करने के लिए ब्लॉग पर पोस्ट कर रहा हूँ!

साथ ही मै संजय भास्कर जी   से भी क्षमा चाहूँगा क्योकि उनका कीमती मणिक-तुल्य कमेन्ट भी मुझसे डिलीट हो गया है!




जय हिंद,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

बुधवार, 18 जनवरी 2012

अर्धविराम की सीमा लांघ पूर्णविराम तक का सफ़र ....

शब्द फूट पड़े है चंहूँ ओर से,
हर पल हर जगह से,
हर हल चल हर परिवर्तन से,
हर स्थूल हर सूक्ष्म से,
बढ़ चले कि कविता बनेंगे....


इसी उमंग में,
फूट रहे थे शब्द हर कहीं से,
पर क्या पता...


एक अधुरा वाक्य
भी वो पूरा कर पायेंगे या नहीं.....?


अर्धविराम की सीमा लांघ
पूर्णविराम तक का सफ़र ....
तय कर पायेंगे या नहीं.... 




जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

शनिवार, 14 जनवरी 2012

उनको भी शुभकामनाये....इस ठण्ड-नाशक(मकर-संक्रांति ) त्यौहार की..!

राम राम जी.... आप सभी को मकर-संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाये....

कहते है आज से ही दिन बड़े होने आरम्भ हो जायेंगे....सर्दी भी अपनी वृद्धावस्था में चली जायेगी...चली जायेगी...धीमी चाल से...पर चली ही जायेगी अब तो!सूर्य देवता जो  अब तक धुंध और मेघो से संघर्ष में स्वयं को यदा-कदा लाचार अनुभव कर रहे थे....अब पुनः अपना तेज प्राप्त करते चले जायेगे.... न मेघो की चलेगी न धुन्ध अब इतना इतर पाएगी....जो चाहेंगे तो बरस जायेंगे मेघ पर....सूर्य देवता से आंखमिचोली...अब अधिक न चल पाएगी...!अर्थात ठण्ड घटती चली जायेगी.....और...

जो बदनसीब(कोई और शब्द मुझे नहीं सुझा) फूटपथो  पर अपने रात-दिन गुजारने
को विवश है.....उन्हें भी संभवतः कुछ राहत अनुभव हो...वैसे तो वो इस दुरूह ठण्ड को ही
ओढने के आदि हो चुके होंगे पर फिर भी.... कुछ तो राहत उन्हें भी मिलेगी..पक्का..!
हाँ...तिल-गुड के लड्डू,रेवाड़ी-गज्जक,मूंगफली  उन्हें न मिल पाए अन्य संपन्न परिवारों की
तरह.... पर... ठण्ड से राहत जरुर मिलनी आरम्भ हो जायेगी.....!

उनको भी शुभकामनाये....इस ठण्ड-नाशक त्यौहार की..!

अरे आज के दिन तो मरने का भी अत्यधिक महत्त्व बताया गया है...तभी....भीष्म पितामह ने तीरों के बिछौने पर भी आज ही के दिन की बाट जोही थी.....सूर्य देवता के उत्तरायण होने के पश्चात् ही उन्होंने प्राण त्यागे थे...!

और हाँ.. बताते है आज ही के दिन देवताओ का दिन आरम्भ होता है...अर्थात अब तक जो लम्बी रात्री देवताओ की चल रही थी वो समाप्त....सुना है वो सब जाग जायेंगे.....सूर्य देव भी उत्तरायणी हो जायेंगे... तो पुण्य कर्मो के फल अब कुछ अधिक मिलेंगे... तो कर दीजिये आज से आरम्भ....कुछ दान कीजिये...बड़ो से आशीष पाइए...लोगो से दुआए प्राप्त करे....!

मुझे लगता है यदि किसी की प्रार्थना में आपके लिए भी प्रार्थना हो रही तो संभवतः वही सब से बड़ा कर्मफल है आपके लिए....तो आज से ही ओरो की प्रार्थना में सेंध लगानी आरम्भ कर दीजिये.....जितने अधिक लोगो की प्रार्थनाये आपके लिए होंगी उतना ही परमात्मा की नज़रों में
highlight होते चले जायेंगे....कर के तो देखिये ऐसा एक बार...! 


जय हिंद,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

उनकी आह नहीं मिटती...

शब्द खड़े है चारो और...
मुझे घेरे...
घूर रहे है...
मैंने पूछा उन से..
"सर्दी नहीं लगती है क्या तुम्हे......?"
वो बोले....
जवाब नहीं तो बात बदलोगे...?
हम ने कहा
 तुमने पूछा ही क्या है..?
वो बोले...
नहीं पूछा तो क्यों हो सहमे-सहमे ...?
मन में क्या कम्पन है..?


हम ने कहा... 
तुम भी खूब हो.
सर्द सुबह  में
सर्दी से ही कांप रहे है!
और जिनकी तुम सोच रहे हो...
उन फुटपाथ पर पड़े
लोगो की 
दिक्कत को भी भांप रहे है!
शब्द जैसे इतराए...
हमारी चोरी पकड़ कर..


हम पुनः बोले..
उनका प्रारब्ध,विधान.....
शब्द तो जैसे गरजे.....
बोले..
हमारे ही सहारे
हम ही से खेलते हो....!


मन की सारी करुणा 
बस कागज़ पर ही उड़ेलते हो!
कविता में तो भिगो देते हो 
हमें भी 
अपने आंसुओ से....
पर असल में 




पर असल में
बच के निकल आये हो तुम 
फुटपाथ पर पड़े अधनंगो से!
उनको कितने ही शब्द 
ओढाओ,पहराओ,
ऐसे किसी ही सर्दी नहीं हटती,
उनके जीवन  से
कोरी  "वाह" बीनने से ही
उनकी आह नहीं मिटती...
उनकी आह नहीं मिटती...
उनकी आह नहीं मिटती...



जय हिंद,जय श्रीराम
कुँवर जी,

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

कंगालों की हम से बड़ी मिसाल क्या है.....?(कुँवर जी)

क्या बताऊ तुम्हे की हाल क्या है..
कंगालों की हम से बड़ी मिसाल क्या है..?


बुझने में जिसे खो रहे जीवन अब तक
पता ही नहीं की असल में सवाल क्या है..?

भीड़ में शामिल हो खूब मचा आये शोर,
समाचारों में सुनते की आखिर ये बवाल क्या है..?

असहमति की अभिव्यक्ति हम कर सकते है,
करते नहीं पता नहीं मन में ये जंजाल क्या है..?

 जो राजी ही नहीं कभी हम से हुए,
उनकी हम से नाराज होने की ये चाल क्या है..?

बिना धन के गरीब देखे थे बहुत जग में,
अपनी आत्मा भी न मिली अपने पास,
न ज़मीर ही कही ढूंढ सके,
ना पाए विचार ही ओढने की खातिर,
ना पलके साहस कर सकी उठने का...
तो जाने कि असल में ये "कंगाल" क्या है..? 

क्या बताऊ तुम्हे की हाल क्या है..
कंगालों की हम से बड़ी मिसाल क्या है..?



जय हिंद,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

गुरुवार, 5 जनवरी 2012

इक उम्मीद थी......(कुँवर जी)

इक उम्मीद थी कि 
धुन्ध छटेगी  तो 
सूरज निकल ही जाएगा...
क्या पता था कि 
मेघ भी 
पहरा लगाए बैठे होंगे!



जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

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