बुधवार, 29 मई 2013

हिंदी और हिन्दी में शुद्ध रूप कौन सा है!

हिंदी और हिन्दी में शुद्ध रूप कौन सा है!
मुझे हिन्दी सही लगता था आज तक! अभी एक सरकारी साईट पर हिन्दी दिवस के अवसर पर लिखा गया सन्देश पढ़ा!उसे पढ़ कर मै भ्रमित सा हो गया हूँ!हिंदी और हिन्दी दोनों शब्दों का प्रयोग इसमें हुआ है,ज्यादा जोर हिंदी पर है!
सामान्य स्तर पर ऐसी त्रुटियाँ साधारण लग सकती है,पर राष्ट्रीय स्तर  और एक सरकारी  तौर पर ये एक अपराध ही गिना जायेगा,गिना जाना चाहिए! 

उस राजपत्र को आप यहाँ देख सकते है

इस पत्र से स्पष्ट दिख रहा है कि मन्त्रालय ने कैसी और कितनी शुभकामनाये दी है हिन्दी दिवस पर!  क्या ये चिन्ताजनक नहीं है कि राष्ट्रीय भाषा को सरकारी मन्त्रालयो में ही गम्भीरता से नहीं लिया जा रहा! 

जय हिन्द, जय श्रीराम!
कुँवर जी,

मंगलवार, 28 मई 2013

ये इमानदारी बढ़ाने वाली दवाई सच में कही मिलती है क्या...?(कुँवर जी)



आज जहा देखो वही भ्रष्टाचार, कपट, झूठ और बेईमानी.... बस सब यही दिखता है! कहते है पहले ये सब गुण "किसी अज्ञात डर" से कही कोने छुप कर रहते थे! यदा-कदा ही समाज में दिखने को मिलते थे!कही दिख गए जिसके संग तो उसे शर्मिंदगी भी महसूस होती दिखती थी!
परन्तु आजकल स्थिति इसके उलट होती जा रही है!ये सब गुण ही आजकल ज्यादा दिखाई दे रहे है!वो "अज्ञात" अज्ञात सा ही हो गया है!उसका डर भी अज्ञात ही बताया जा रहा है!
 

इमानदारी जैसे गुण लुप्त प्राय दिखने लगे है!लुप्त नहीं हुए है, ऐसा दिखने लगा है! एक तो  इमानदारी बेचारी अकेली पड़ गयी और वो दुसरे गुण कई सारे इक्कठे हो गए!
 

अब वो अज्ञात तो मानो गया! पर समस्या अभी भी ज्यू की त्यू खड़ी दिखाई देती है! ये सारे गुण जो कि समाज में अव्यवस्था पैदा करते है,असंतुलन पैदा करते  बढ़ते हुए ही दिख रहे है!
 

आज के शरीर विग्नानीयो ने कोई ऐसी दवाई तो बनाई ही होगी जो ऐसे गुणों को कम करके इमानदारी,सद्भावना और भाईचारे जैसी भावनाओं को बढ़ा दे!

कोई ऐसी मशीन अथवा कुछ भी चीज खोज ली गयी होगी जो प्राणी  स्वभाव या तो मानव स्वभाव को समझ के नियंत्रित कर दे!उसे समाज के हित के हिसाब से ही व्यवहार करने दे!

हो सकता हो कि  ये सब चीज़े (दवाई,मशीन) बहुत महँगी होगी जो अब तक मार्किट में नहीं दिखी! या फिर ये भी हो सकता है कि सरकार ने  ही रोक लगा दी हो इन पर…. सत्ता का सवाल है भई !
कोई दवाई या मशीन नहीं तो क्या हुआ….!क़ानून तो बना ही रखा है, जनता पर लागू  भी है!

 क़ानून..... नहीं; 
ये तो होने के बाद वाली वयवस्था है! और फिर वही बात अब ज्ञात का डर दिखाया जा रहा है! कोई ऐसा इलाज जिसमे डर  वाली भावना ही ख़त्म हो जाए !
होगा तो जरूर!

ये इमानदारी बढ़ाने वाली दवाई सच में कही मिलती है क्या...?
जय हिन्द, जय श्रीराम,
कुँवर जी,

गुरुवार, 23 मई 2013

सुनिये……. ' उस' का प्रमाण है आपके पास… ?(कुँवर जी)

एक आदमी करहाता हुआ सा, लगभग झुका  हुआ धीरे-धीरे एक चिकित्सक महोदय के पास पहुंचा!चिकित्सक ने देखा आदमी तो बहुत परेशां है!तुरंत उसको अपने पास बुलाया,पूछा कि क्या बात हुयी है,इतने परेशान क्यों हो?
वो आदमी अपनी कमर पर हाथ  रखता हुआ बोला ," मेरी पीठ में दर्द है!
चिकित्सक- अच्छा; कुर्ता  ऊपर उठाओ!
मरीज ने अपना कुर्ता ऊपर उठाया, चिकित्सक ने पीठ पर हाथ फिराया और कहा- नहीं;दर्द नहीं है!
आदमी ने कहा साहब दर्द तो है,तो चिकित्सक पीठ को सूंघने लगा!
आदमी-" ये क्या कर रहे हो साहब?"
चिकित्सक-"दर्द को सूंघने की कोशिश कर रहा था!"
आदमी-"साहब क्या सूंघने से  पता चलेगा?
चिकित्सक-अच्छा! चलो चाट कर देख लेता हूँ!
आदमी-  साहब...?
चिकित्सक-अच्छा चलो लेट जाओ, चिकित्सक ने अपना कान मरीज की पीठ पर रख दिया,स्टेथोस्कोप मँगा लिया...गौर से सुना और फिर कहा - नहीं दर्द है ही नहीं!
आदमी- साहब दर्द तो है,मै मरा जा रहा हूँ दर्द से!
चिकित्सक- कोई प्रमाण लाओ दर्द का,तो माने! जो है वो दिखना चाहिए,उसे हम छूकर जान पाए,उसे सुन पाए अथवा तो कोई स्वाद ही हो उसका...! किसी तरह तो उसका पता चले!
आदमी- पता मुझे चल रहा है,मै दर्द से मरा जा रहा हूँ!
चिकित्सक- नहीं आपका कहना ही प्रमाण नहीं हो सकता!आप ठीक है!कोई दर्द नहीं है!
आदमी- पर दर्द तो.....
चिकित्सक बीच में टोकते हुए- प्रमाण.....??
आदमी बेचारा चुप,अब क्या करे,कैसे दिखाए दर्द का प्रमाण!

अब वो लगा वही चक्कर काटने, एक तो दर्द ऊपर से जिसके पास वो आस लेकर आया था वही कह रहा है कि कहा है दर्द ....?
अब आदमी खामोश चिकित्सक को देखता जाए,चिकित्सक कंधे उचका कर इशारा करे दर्द है ही नहीं, है तो प्रमाण दिखाओ!
अब तो जी हो गयी हद,जैसे ही चिकित्सक उस आदमी के पास से गुजरा, आदमी ने न चाहते हुए भी चिकित्सक की पीठ में एक जोरदार घूंसा जड़ दिया! अब तो वो चिकित्सक दर्द से कराहे, सभी चेले-चपाटे चिकित्सक के पास  एकत्रित  हो गए!चिकित्सक चिल्लाये मै मरा , दर्द हो रहा है!मै मरा ,दर्द हो रहा है!
तब आदमी के चेहरे पर मुस्कान आई , वो बोला - साहब,किधर दर्द हो रहा है,

चिकित्सक- यहाँ पीठ में!
आदमी - दर्द दिखाई नहीं दिया कही,आओ जरा समीप आओ,सूंघ कर अथवा चाट कर देखू अथवा तो  छूने से कुछ पता चले!
अब चिकित्सक आदमी को चुपचाप देखे जा रहा है!



ये कहानी टाईप की घटना कही कभी सुनी थी,तब इसे किसी और तरह से सुना था! आज अपने शब्दों में यहाँ प्रस्तुत किया है!हालांकि मूल कहानी में कुछ बदलाव हो गए है पर इसका उद्देश्य अभी भी वही  है जो तब था!
आपको नहीं लगता ऐसी कुछ चीजे है जो बस स्वयं के अनुभव का विषय है! आप कभी विचार करना क्या कोई अनुभव है आपका ऐसा जिसको आप शब्द और आकार में न बाँध पाए हो!हालांकि आप हर एक अनुभव को प्रमाण रूप में कोई शक्ल देने के हिमायती हो पर इस से आपके उस अवर्णनीय अनुभव पर तो कोई फर्क नहीं पड़ता !


एक छोटी सी बात… आप मौन एकांत में खड़े है,आप मन-मन में कुछ बोल रहे है, गुनगुना रहे है अथवा तो सोच रहे है…. इस बात का किसी और को क्या प्रमाण देंगे आप!जबकि बोल तो आप रहे थे!

अब  आपने गुड खाया है,मीठा आपको लगा है,आप मुझे बताये कि गुड का स्वाद मीठा है, मेरा मुह मिठास से भर रहा है,आपके ऐसा कहने भर से ही मेरा मुह मीठा नहीं हो जायेगा!आप मीठा लिख दो उसको चाटूं  तब भी ये संभव नहीं है!हालांकि आपका अनुभव सच्चा है इसमें कोई दो राय  नहीं है!अब आप कहेंगे कि ये तो गुड खाकर ही हो पायेगा और मै  कहूँ कि नहीं गुड तो मै नहीं खाऊंगा!ये तो कोई भ्रमजाल हो सकता है!आप तो किसी और का बनाया हुआ गुड दोगे .... आदि-आदि! तो आप क्या कहना चाहेंगे मेरे बारे में!
 
आपको नहीं लगता जो ये प्रमाण परम्परा  वाले है या यूँ कहूँ कि जो केवल प्रमाण परम्परा वाले है वो प्रमाणों के भ्रमजाल में फसे हुए है और अपना  समय केवल प्रमाण इक्कट्ठे  में ही गवां रहे है !

अब उस परम तत्व इश्वर का वो प्रमाण मांगते है…. वो स्वयं उस परमशक्ति के होने का प्रमाण नहीं है क्या?



 जय हिन्द ,जय श्रीराम,
कुँवर जी , 

क्रिकेट करे चित्कार.....(कुँवर जी)

क्रिकेट करे चित्कार
अब मेरा खेलना है बेकार!
जब नोटों का मिले हार
तो हर हार है स्वीकार!
खेलने का मिला जो अधिकार
तो खेल से करते व्यभिचार!
जो पहले देख लेते थे आनंद अपार
अब देखना भी उनको लगे धिक्कार!


जय हिन्द,जय श्रीराम,

कुँवर जी,

बुधवार, 22 मई 2013

मौत भी बहला लेगी दिल अपना हमसे

जब तक जिन्दा है तो
जिंदगी के ही मरीज है,
फिर एक दिन मौत भी

बहला लेगी दिल अपना हमसे!

जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,
 

मंगलवार, 21 मई 2013

जो था नहीं.....(कुँवर जी)

जो था नहीं,
जो रहेगा नहीं,
वो ही रह कर भला क्या हो जायेगा !
जो रुका नहीं,
जो रुकेगा नहीं ,
 उसके लिए रुक कर भला क्या मिल जायेगा!
पर हम रुक जाते है,
जो है नहीं 
वो ही रह जाते है,
ना  कुछ होता है,
ना कुछ मिलता है,
शेष रह जाता है वही 
जो था ही …। 


जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,


शुक्रवार, 10 मई 2013

कोई अपने माँ-बाप को पूज्यनीय माने या न माने, पर जब मुद्दा देश या देश से सम्बंधित हो तो..(कुँवर जी)



कोई अपने माँ-बाप को सम्मान दे या न दे,उनको पूज्यनीय माने या न माने, उस से किसी को क्या लेना-देना हो सकता है भला!पर जब मुद्दा देश या देश से सम्बंधित हो तो सार्वजनिक हो ही जाता है!


पहले ये ऐसी ओछी दुर्घटनाये आतंकवादी बहुल क्षेत्रो में ही देखने को मिलती थी पर इस बार तो सभी सीमाओं को लांघते हुए लोकसभा के अन्दर ही ऐसा हुआ है!लोकसभा अध्यक्ष ने तुरंत इस पर आपत्ति जताई और दुबारा ऐसा न होने की आज्ञा भी दी....

पर उन बुजुर्ग जनाब को तो अपनी कौम का हीरो बनना था!उन्होंने खुले आम ऐलान किया वो आगे भी ऐसा ही करेंगे!अब इस से बढ़कर देश के लोकतंत्र का अपमान और क्या हो सकता है!ये बुजुर्गवार अपनी कौम के हीरो बन ही चुके है!

यदि सही में ये हीरो बन गए है तो क्या ये बात चिंता जनक नहीं है कि वो अब तक लोकसभा के सदस्य है,देश के नागरिक है और देश में अभी तक स्वतंत्र है!और मै देख रहा हूँ कि इन बुजुर्गवार के पक्ष में बहुत से पढ़े-लिखे समझदार कहलाने वाले मुस्लिम भाई भी बिलकुल वही तर्क दे रहे है जो स्वयं इन्होने दिए है!यहाँ मई और अधिक चिंताग्रस्त हो जाता हूँ! क्या मेरी चिंता वाजिब है!मुझे तो लगता है कि वाजिब है पर कई बार जब देखता हूँ कि देश का एक पढ़ा-लिखा वर्ग(जिसमे हिन्दू-मुस्लिम दोनों है) वन्दे मातरम् के महत्त्व पर ही प्रशनचिन्ह लगा रहे है!

कोई कहता है कि ये तो मात्र एक गीत है जिसे आनंद मठ नामक पुस्तक में लिखा गया था,उस से पहले ये राष्ट्र के सम्मान का विषय नहीं था,तो अब कैसे हो गया..?

उनकी ही बात को सही माने तो.... १९४७ से पहले तो देश का कोई लिखित संविधान भी नहीं था!कही नहीं लिखा था कि हिन्दुस्तान एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है!तब तक वो एक हिन्दू राष्ट्र ही था!बिना किसी विवाद के!

वो कहते है कि जो इस गीत को राष्ट्र के सम्मान का विषय बता रहे है उन्हें आनंद मठ का पता भी नहीं होगा,किसी ने इस पुस्तक को पढ़ा भी नहीं होगा!

अरे नहीं पता है हमें आनंद मठ का, नहीं पढनी है हमें ये पुस्तक!इस गीत को राष्ट्रिय गीत आनंद मठ ने नहीं बनाया है,ये गीत अमर किया है शहीद भगत सिंह, अशफाखुल्लाह खान जैसे अमर क्रांतिकारियों ने गाकर!मेरे देश के संविधान ने!



वो कहते है कि हर किसी को तो ये भी नहीं पता कि ये राष्ट्रिय गीत है या राष्ट्रीय गान!अरे क्या फर्क पड़ता है इस से.... राष्ट्रिय गीत और राष्ट्रीय गान के प्रति सम्मान होना चाहिए मन में बस! और यदि सम्मान मन में है तो क्यों न वो बहार भी दिखे,क्यों ना  हो व्यवहार में, जो उस से किसी का कैसा भी नुक्सान नहीं हो रहा हो तो!



क्यों सभी हिन्दू देश के संविधान को मानने के लिए विवश है की अब हिन्दुस्तान हिन्दुस्तान नहीं रहा...भारत अथवा तो इंडिया हो गया है!मुझे लगता है कि ये देश के प्रति सम्मान और मातृभूमि को पूज्यनीय मानने का ही परिणाम है!माना हमारे देश में मुस्लिम बहार से आये हुए है पर जो मुस्लिम आज हमारे देश में है उनकी मातृभूमि तो ये मेरा प्यारा और वन्दनीय भारत महान ही है!मुझे इसमें कोई रूचि नहीं कि इस्लाम क्या कहता है और क्या नहीं कहता है!लेकिन मेरे देश और मातृभूमि से सम्बंधित सभी विषयो पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने में मुझे पूरी रूचि है और ये मेरा अधिकार भी है जो मेरे देश का संविधान मेरे सहित देश के हर नागरिक को देता है!

मेरे देश का संविधान सभी को सम्मान देने या न देने की स्वतंत्रता तो देता है पर किसी को भी किसी भी प्रकार से किसी का भी अपमान करने कि स्वतंत्रता तो कतई नहीं देता!और एक अच्छे खानदान के संस्कार भी ऐसी ही प्रेरणा देंगे!और जो संविधान एक बहार से आये हुए अतिथि को देश का ही सामान नागरिक बनाने का अधिकार दे रहा है उस लोकतांत्रिक संविधान का ही लोकतंत्र के मंदिर में ही(लोकतंत्र की मस्जिद इस लिए नहीं क्योकि इस्लाम में लोकतंत्र मान्य नहीं बताया गया है) सार्वजानिक रूप से अपमान किया जा रहा है! और ये अपमान किसी गुंडे-मवाली, आतंकवादी ने नहीं किया है बल्कि लोकतांत्रिक विधि से चुने गए लोकसभा सदस्य के द्वारा हुआ है!इस पर भारत सरकार को शीघ्र ही कोई कठोर कदम उठाना चाहिए!और यदि सरकार कुछ नहीं करे तो देश कि जनता को ही सोचना पड़ेगा और सोचना चाहिए कि किसे लोकसभा अथवा लोकतंत्र के मंदिर में भेजना है और किसे नहीं भेजना है!





कृप्या सच्चे मुसलमान भाई इसे ना पढ़े! मै नहीं चाहता मेरी वजह से किसी मुस्लिम भाई के इस्लाम का उल्लंघन हो!लेकिन जवाब कौन देगा भाई?


जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

बुधवार, 1 मई 2013

एक लोटा पानी और दो मुट्ठी चावल.....






थोडा रूक कर सोचे तो देखेंगे कि हम इस तरह भी तो भगवद सेवा कर सकते है!हम मानव तो अपनी जरुरत की चीजो का संग्रह कर के रख ही लेते है और जितनी जरुरत होती है उस से कहीं अधिक ही संग्रह कर लेते है!पर ये बेजुबान,निरीह पशु-पक्षी.... अभी भूख लगी तो कही जाकर खा लिया और प्यास लगी तो जो पानी कही भी उपलब्ध हो गया पी लिया! कल तो बहुत दूर है,दूसरी बार खाने-पीने के लिए भी ये संग्रह नहीं करते!

यदि हम देखे हमारी संग्रह की आदत से हम इनको भी लाभ दे ही सकते है!जो हम अपने लिए संग्रह कर रहे है उसमे से कुछ हिस्सा इनके लिए निकाल ले,और रख दे कही ऐसी जगह जो इनकी पहुँच में हो सरलता से,और सुरक्षित भी हो!और सोचो कितना हमें इनके लिए निकालना है,बहुत कम मात्र ही इनके लिए पर्याप्त है!




एक लोटा पानी और दो मुट्ठी चावल,अनाज या जो भी अन्न हमें आसानी से मिल जाता हो!बस इतने से ही हम अपनी भगवद सेवा कर सकते है!हाँ,बदले में इन्हें खाने-पीने वाले पंछी आपको धन्यवाद बोलने तो नहीं आयेंगे पर आपको अनुभव जरूर होगा कि आपको धन्यवाद मिल गया है!अरे सोचना कि नहाने में एक लोटा पानी कम प्रयोग कर लेंगे, मंजन में थोडा कम पानी खर्च लेंगे.... और कितनी ही ऐसी गैरजरूरी पानी की बर्बादी को कम कर के हम ये एक लोटा पानी रोज निकाल ही सकते है और जिनमे हमें कुछ कमी भी महसूस नहीं होगी उस एक लोटे पानी की!

जरुरत है तो बस एकबार सच्चे मन से संकल्प करने की कि अब मुझे हर रोज एक लोटा पानी और दो मुट्ठी चावल पंछियों के लिए निकालने ही है और छत पर,झांकी में या कही भी उनकी सरलता से पहुँच वाली जगह रखनी है......बस! फिर तो भगवान् भी आपको नहीं रोक सकता उन पंछियों के लिए ऐसा करने से!


जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी,

लिखिए अपनी भाषा में