अनजानों में कही छिपा होता है
जाना-पहचाना सा कोई
कभी रास्ते बदल जाते है
तब जान पड़ता है
कभी राहे वो ही रहती है
नजरिये नहीं बदलते
और लोग बदल जाते है।
कभी रास्ते बदल जाते है
तब जान पड़ता है
कभी राहे वो ही रहती है
नजरिये नहीं बदलते
और लोग बदल जाते है।
फिर कही दूर किसी मोड़ पर
पलटते है हम
ना जाने क्या सोच कर
साँस समेट कर धड़कन रोक कर
पलटते है हम
ना जाने क्या सोच कर
साँस समेट कर धड़कन रोक कर
और
और पीछे से जिन्दगी छेड़ती है हमे
कहती है कि मै यहाँ तेरी राह तक रही
तू किसकी राह देखे।
कहती है कि मै यहाँ तेरी राह तक रही
तू किसकी राह देखे।
मन के चोर को मन में छिपा
आँखों मिचका कर
कहते हम भी फिर
अरे तुझे ही तो ढूँढ रहे थे।
चलो चलते है।
अरे तुझे ही तो ढूँढ रहे थे।
चलो चलते है।
जय हिन्द,जय श्रीराम,
कुँवर जी ,